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आरक्षण आरक्षण आरक्षण …

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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आखिर कब तक ये नेता आरक्षण का इस्तेमाल कर के एक राजनैतिक अत्याचार करते रहेंगे और साल दर साल अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते रहेंगे? आखिर ये आरक्षण का पासा कब तक फेंका जाता रहेगा? संविधान सभा की सोच के हिसाब से, अत्यंत पिछड़े दलित वर्ग जिन्हें मात्र उनकी सामुदायिक पहचान जिसे जाति कहते हैं, के आधार पर किसी भी अधिकार, क्षमता, जिम्मेदारी, विश्वास और सामाजिक शक्ति के अयोग्य मान लिया गया था, को पलटने के लिए आजादी के प्रथम दस वर्षो के लिए, विश्व में कहीं भी दुर्लभ, जातिगत आरक्षण को राज व्यवस्था में लागू किया गया I आज वही आरक्षण नेताओ के हाथो में एक खिलौना हो गया है जिसे वो कभी भी कहीं भी मनमाने तौर पर इस्तेमाल गाहे बगाहे करते रहते हैं. कभी महिला आरक्षण और आज मुस्लिम आरक्षण. ये देश आज महा मूर्खो, मौका परस्तो और धृष्ट जन प्रतिनिधियों के हाथ लग गया है और देश की हर विसंगति का इस्तेमाल ये नेता अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने में लगे हुए हैं और विसंगतियों को दूर करने या उन कारणों को दुरुस्त करने की उनकी कोई इच्छा नहीं है! पहले ये कुतर्क देकर महिला आरक्षण को संसद में पेश करते हैं और फिर उसपे की गयी नौटंकी से अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को सींचते हैं और फिर उसके बाद वर्षो उसके पके की खाते हैं. अब ये मुस्लिमो के लिए आरक्षण ले कर आये हैं.. आखिर नेताओ को और वो भी कोंग्रेसी नेताओ को किसने अधिकार दिया है संविधान और प्राकृतिक न्याय के साथ खेलने का?
जब वो महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें संसद में आरक्षण देने की फुलझड़ी छोड़ते हैं तो वे इस बात को एकदम नजर अंदाज कर देते हैं की हर महिला किसी न किसी घर को संभालती है और पुरुष ही काम के लिए बाहर निकलता है क्योंकि काम और पारिवारिक निर्वाह की जिम्मेदारी केवल पुरुष पर होती है, दुसरे महिला कोई पुरुष से अधिक सक्षम नहीं होती और अगर होती है तो उसे सामान्य तरीके से आने में कोई रोक तो है नहीं… तीसरे, अगर इस देश, जहाँ महिलाओं को बिना मांगे ही सब कुछ मिल गया है जो किसी और देश में नहीं मिलेगा, में इतनी महिलाओं के होते भी स्थिति नहीं सुधरी तो अब कैसे सुधर जाएगी? और वास्तव में सुधरती हो तो क्यों न हर पद महिलाओं को दे दिया जाये पर हमें विश्व में उदाहरण इसके ठीक विपरीत मिलते हैं! तो इस महिला आरक्षण का उपयोग परम पूजनीया सोनिया गाँधी (या अन्तोनिया मैनो) ने अपनी छवि को मजबूत करने और अपनी सरकार और पार्टी की राष्ट्र सञ्चालन की अक्षमता को छिपाने के लिए ही किया, ऐसा सुनिश्चित हो जाता है.
और आखिर, जाति आधारित आरक्षण देने का आज परिणाम क्या है? आरक्षण दे देकर ही हर पिछड़े या दलित का उत्थान करना इस संवैधानिक व्यवस्था का प्रयोजन नहीं था और राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ की कीमत पर तो ये कत्तई नहीं था. आरक्षण का पहला मंतव्य था, उन तथाकथित सवर्ण जातियों को ये दिखाना के ये दलित कहे जाने वाले अ-पुरुष भी वो सब कर सकते थे जो कोई अन्य मनुष्य कर सकता है. आज वो बात सबके सामने है पर, अब इसके आगे जो हो रहा है अब वो, सुनियोजित, जबरदस्ती थोपा हर बार किया जाने वाला राजनैतिक अत्याचार बन गया है!!
स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है अगर एक व्यक्ति को रोटी देनी है तो उसे भीख या आरक्षण दे दो पर अगर उसे काम देना है तो उसे गुण विकसित करने की क्षमता या शिक्षा दो!
पर, इसका ये मतलब भी नहीं है, की शिक्षा देने के पहले ये न देखा जाये की आखिर वो योग्य है भी या नहीं और किसी दुसरे भारत वासी के साथ अन्याय करके किसी को अनुग्रहित करना कहीं से भी स्वीकार्य नहीं है. और आज ये हालात है की अरक्षित पदों को जबरदस्ती भरा जा रहा है यहाँ तक की जिन पदों, सीटो पर (जैसे मेडिकल) ५०% क्वालिफाईंग अंक हो और चयन अंक सीमा ७५ या ८०% हो वहां १०% तक पर भर्ती की जा रही है. और आपको जानकर आश्चर्य होगा की कई बार तो शुन्य अंक पर भी सीट थमा दी जा रही है. और कई लाख सवर्ण अन्य भारतीय बच्चो और नागरिको को इस राजनैतिक अत्याचार के कारण योग्य होते हुए भी जीवनपर्यंत कुंठा झेलनी पड़ती है I

आखिर ये न्यायवादी संवैधानिक व्यवस्था कैसे है? किसी व्यक्ति के साथ हुए अत्याचार का निपटारा अत्याचारी के पोते के साथ अत्याचार करके कैसे निकाला जा सकता है? आखिर जातिवाद के विकृत रूपों को सुधारने का ये कोई तरीका है? क्या सरकार ने जातिवाद के नाम पर शोषण करने वाले या अन्याय करने वालो के खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाया? सरकार ने अपनी कमी क्यों नहीं सुधारी? शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रो में जो देश को सँभालने वाले दो प्रमुख स्तम्भ हैं में ये आरक्षण सबसे भयानक विकृत रूप ले चूका है और आज देश को बर्बाद करने के सारे बीज ये बो चूका है!! इन दो महत्वपूर्ण क्षेत्रो में व्याप्त अन्य भ्रष्टाचारो के साथ आरक्षण राष्ट्र हित की बलि लेने वाला है ! शिक्षा माफिया का सीटों का व्यापार, सिफारिश, जुगाड़ का जंजाल, अयोग्य लोगों का पैसे के लालच में इन क्षेत्रो में प्रवेश और सरकार की लगातार अनदेखी और अनापशनाप अंध-प्रयोग के चलते इन दो सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रो का पूरा बंटाधार हो चूका है I सरकार का काम ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना है जिसमे हर देश वासी बिना किसी भेदभाव का सामना किये, उसकी योग्यता के सही मूल्याङ्कन से अपनी वांछित पद-पदवी को प्राप्त करे .. क्या सरकार ऐसा कर पाई है? जब सरकार ऐसा नहीं कर पाई है तो ये किसकी गलती है और इस गलती को आरक्षण देकर अपनी गलती पर पर्दा डालने का अपराध कौन कर रहा है? और आखिर सरकार वास्तव में चाहती क्या है? क्या वो सभी पिछडो और दलितों को आरक्षण की सीढ़ी देकर आगे करना चाहती है ? यानि १० लाख से भी कम नौकरियों में कई करोड़ पिछडो और दलितों को जबरदस्ती ठूंस कर वो कौन सा न्यायपूर्ण राज स्थापित करना चाहती है? और बाकि उन तथाकथित सवर्णों का क्या होगा जिनकी संख्या भी कई करोडो में है?
क्या आज नेता किसी विद्यार्थी, किसी अभ्यर्थी या कर्मचारी की योग्यता निर्धारित करेंगे और क्या ये बताने से पहले वो संविधान में लिखी पहली पंक्तियों को पढना सुनिश्चित करेंगे जो कहता है —” हम भारतीय गणराज्य के वासी, बिना रंग, जाति, लिंग, धर्म, भाषा के भेदभाव के…………”
क्या किसी को उसकी जाति या लिंग के आधार पर सरकारी पदों और सीटो पर फायदा देना संविधान के खिलाफ नहीं है?
क्या अगर कोई जाति ४० % है (वो भी सरकार के बनाये पैमानों पर*) तो क्या वो जाति देश की हर योग्यता के लायक हो गयी? यानि उसी जाति के सदस्य अब डॉक्टर, वकील, इंजीनिअर, आर्किटेक्ट, बैंक कर्मी, पुलिस सिपाही-अधिकारी, सफाई कर्मी, आरटीओ, बीडीओ यानि सब कुछ के लायक हो गए ..वो भी एक साथ? और अगर सीट खाली हो गयी तो जबरदस्ती भरकर योग्य उम्मीदवार बना दिए जायेंगे. यानि अब कोई गंवार नेता निर्णय करेगा की कौन गुणी है और कौन किसी सीट के योग्य? यानि गुण, मेरिट, मेहनत, योग्यता इत्यादि का कोई मतलब नहीं?

khur

beni

arakshan

यानि अब गंवारो के विचारो से देश चलेगा?
ये सरकार का दोहरा भ्रष्टाचार है जिसमे पहले तो वो प्राथमिक स्तर पर आधारभूत व्यवस्थाओ को नजरंदाज करके पहला नुकसान करती है और दूसरा आखिरी में, चुनाव के वक्त आरक्षण का चारा डाल सबसे बड़ा नुकसान करती है और वो भी केवल अपनी राजनितिक स्वार्थ के लिए.
और धार्मिक आधार पर आरक्षण? मुस्लिम पिछड़े और गरीब हैं माना, पर क्या हिन्दू गरीब नहीं हैं? क्या मुस्लिम उनके विरुद्ध किये गए किसी पक्षपात से पिछड़े हैं या अपने दकियानूसी धार्मिक रीतिरिवाजो के कारन? अगर एक हिन्दू को उसके धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं है तो किसी मुस्लमान को उसी आधार पर आरक्षण क्यों?
क्या मुस्लिम भारतीय नहीं हैं? और, क्या यह देश धर्म निरपेक्ष नहीं है? धर्म के आधार पर किसी को फायदा देना क्या अवैध नहीं, और वो भी सीधे राज्य द्वारा? क्या संविधान की प्रथम पंक्ति में लिखे इस विधान का असम्मान संविधान का अपमान नहीं है? अगर नहीं तो कैसे, मुझे समझ नहीं आता I पर एक नेता, कोई भी कानून तोड़ सकता है और मैं इस सवाल का जवाब भी नहीं मांग सकता?
आखिर कैसे ऐसी व्यवस्था का निर्माण हो गया जिसमे लोग पिछड़े बनकर अपने लिए आरक्षण की मांग करते हैं और उसके लिए सरे आम धमकी देने और पटरियां उखाड़ने में जरा नहीं डरते?!
आरक्षण की बैसाखी हर रोज भिखारी, पंगु और देश के बोझ पैदा कर रही है I मैं इसपर कोई सफाई देना जरूरी नहीं समझता की मेरा वक्तव्य किसी भी भारतीय के खिलाफ नहीं है, मैं किसी भी जाति, धर्म या लिंग के विरुद्ध विचार नहीं रखता!

पहले से ही टूटे, खंडित, पराजित, विनष्ट देश में खोखले नागरिक तैयार हो रहे हैं जिन्होंने देश की मौत का सामान इकठ्ठा किया है I
एक डरपोक देश के डरपोक नेता क्या कभी देश के भले के लिए खरी बातें करेंगे? इन डरपोक नेताओ को डरपोक देशवासियों पे इतना भरोसा कब तक रहने वाला है?

अगर इन मूढ़ नेताओ को नहीं मालूम की योग्यता स्तर कैसे निर्धारित किये जाएँ या योग्य की पहचान क्या है तो उन्हें विशेषज्ञों से परामर्श करना चाहिए… खुद ही को हर कर्म के लायक समझने की मूर्खता नहीं करनी चाहिए.
पर भ्रष्टता फैलाना मूर्खता नहीं बल्कि एक महा अपराध है और ये अपराध रोज किया जा रहा है..इससे देश का, हमारा कितना नुकसान है मुझे इसे बताने की जरूरत नहीं… पर जरूर ये देश फटने की कगार पर है और, इन नेताओ के अपराधो का फैसला कौन करेगा मुझे नहीं मालूम…!!

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