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धोनी की शामत-२

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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शायद कई लोगो को अब मालूम चल रहा होगा की भारतीय क्यों कुछ बड़ा नहीं कर पाते या क्यों नहीं बड़ा करते रह पाते हैं? भारत के लिए अब तक अकल्पनीय सफलताएँ पाने वाले ‘कैप्टन कूल’ महेंद्र सिंह धोनी और युवा भारतीय क्रिकेट टीम का मांस नोचने के लिए टीवी मीडिया लगा हुआ है. मुझे समझ नहीं आता की आखिर आसमान के हर तारे तोडना भारतीय क्रिकेट टीम का ही काम है? कौन हैं ये हारे हुए लोग जो सारी सफलताएँ तो बस क्रिकेट टीम से चाहते हैं और अपनी सारी पराजयों से खुद मुंह चुराना चाहते हैं? कौन लोग हैं जो इस देश में कुछ करने वालो के ही पीछे पड़ जाते हैं उनकी टांग खींचने के लिए, आखिर क्यों ऐसे लोगो को बोलने का हक़ मिला हुआ है जिनका खेल से कोई भी सरोकार नहीं बस एक कैमरा, माइक ले लेने से किसी को अधिकार हो जाता है की लोग बिना सोचे समझे बोलना शुरू हो जाएँ? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सालो खेलने वाले किसी विशेषज्ञ क्रिकेटर की टिपण्णी आए या न आए पर इन चैनल वालो की काएं काएं हर कोने से आना शुरू हो जाती है.. रोज शाम नींद से उठकर सज धज कर स्टूडियो में बैठ लिपस्टिक पाउडर लगा कर इनका पुरुष क्रिकेट टीम को ऐसे कोसना शुरू हो जाता है मानो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट तो इनके खानदान की बपौती रही हो.. गुस्सा तो तब आता है जब इन चैनलों पर बैठी महिलाएं ऐसे अपनी राय देती हैं मानो वो क्रिकेट की देवी हैं क्रिकेट इनकी नस नस में दौड़ रहा है, चिकने थोबड़े लिए टीवी के एंकर(स्टार टीवी) भारतीय क्रिकेट टीम को ऐसे नसीहत देते हैं मानो क्रिकेट का ज्ञान तो अपनी माँ के पेट से लेकर आए हैं..
आज, ये सोचने वाली बात है की भारतीय खिलाडियों को करना क्या चहिये ? इतने कठिन चुनौतीपूर्ण विश्व स्तरीय खेल के संघर्ष को झेलना वो भी ऑस्ट्रेलिया जैसी सबसे मुश्किल जगह पर और उसकी तैयारी करनी चाहिए, या फिर खुद कीफोटो खिंचने से बचाना, अपने को कमरे में कैद कर लेना, बाजार में दिख जाने से बचना या मीडिया के उलजुलूल छींटाकशी या प्रेस कोंफ्रेंस की तयारी करना चाहिए ?
जैसे घर में औरत मर्द का जीना हराम कर देती है उसी तरह भारतीय क्रिकेट टीम को अब ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका इत्यादि के खिलाफ खेल की तैयारी के ऊपर झेलना होता है मीडिया के सवाल जवाब को. ये किसी के लिए आसान नहीं है! भारतीय खेलो को क्यों इसकी कीमत चुकानी पड़े ये सोचने वाली बात है..!
श्रीलंका को धमाकेदार अंदाज़ में धोने के बाद अब यही मीडिया उसका श्रेय लेने में भी नहीं चूकेगा, आखिर इस तरह के परजीवियो की जरूरत ही क्या है इस देश में? जो काम इस को करना है वो तो मीडिया कर नहीं रहा पर अपने सिवाय हर दुसरे का मांस नोचना इसकी फितरत बन गयी है I
अगर ये मीडिया ये कहता है की वो जनता की भावनाओ को व्यक्त कर रहा है तो उससे ये पूछा जाना चाहिए की उसे ये मुगालता कैसे हुआ ? किसने कहा की हर भारतीय बस भारतीय क्रिकेट टीम से जीत ही देखना चाहता है? जीत तो हमें चाहिए ही पर उससे बढ़कर अच्छा खेल देखना हमारे लिए अधिक जरूरी है. विश्व स्तर पर ऑस्ट्रेलियन जमीन पर किसी अंतर्राष्ट्रीय टीम से जीतना कोई तबला ठोंकना, नौटंकी के मंच पर कमर मटकाना, फ़िल्मी संवाद बोलना या रैम्प पर चहल कदमी करने के जैसा नहीं है के जो चाहा वो आधी नींद में भी कर लिया.
बाड़ के बाहर बैठकर ताली बजाने वालो को मैदान में अधिक अन्दर घुसने की गुस्ताखी नहीं करनी चाहिए क्योंकि मीडिया की हद से अधिक दखलंदाजी और कान के कच्चे अधिकारियो के उसको मानने, बेतहाशा विज्ञापन और धंधेबाज कंपनियों के चंगुल में घुटकर कर वैसे ही खेल का बहुत नुकसान हो रहा है !!!

सच्चाई यही है की अगर बस ये “फेंस-सिटर” अपने अत्यधिक निगरानी से भारतीय खेलो खासकर क्रिकेट को बख्श दें और अन्य खेलो पर संतुलित ध्यान दें तो क्रिकेट सहित हर खेल का बड़ा भला होगा.

viraaat

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