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मतिभ्रष्ट पेटीकोट सरकार- हिन्दू विवाह बिल

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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दिल्ली में बैठी पेटीकोट सरकारें न तो सत्ता धर्म में खुद को साबित कर पायीं है, न तो शासन व व्यवस्था के लिए जरूरी योग्यता दिखा पायीं बस सर्वत्र अपने निक्कमेपन का प्रदर्शन करते हुए अभी तक इसने मात्र देश-अहित के ही काम किये हैं.. न तो ये सरकार सत्तर सालो में देश को प्रगति दे पाई, न विकास, न सुरक्षा और न ही बुनियादी मजबूती. कई लाख मौलाना मदनियो को बनाया है इस सरकार ने नक्सल, बोर्डो, कश्मीर के अलावा और कई हजार कसाबो को पाला पैदा किया है.. न देश की अर्व्यव्स्था मजबूत कर पाई है, न देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, धर्म, परंपरा को बचा पाई है.. इस सरकार ने कुछ नहीं किया है मात्र उलजुलूल कानून बनाने के!!
नेहरु ने मुस्लिम वक्फ कानून के विपरीत हिन्दू विवाह कोड तैयार किया था जिसमे मुसलमानों को चार शादियो की छूट थी और हिन्दू पुरुषो को बस एक विवाह की !
बीच में इंदिरा सरकार दहेज़ विरोधी कानून ला चुकी है जिसने औरतो को एक नाजायज़ हथियार थमा दिया है रेणुका चौधरी घरेलु हिंसा के नाम पर दूसरा कानून ला चुकी है जिसका न सर है और न पैर. महिला की जुबान ही अब कानून है.. उसे बस आरोप लगाने की देर है यहाँ तक किसीके देखने और बोलने तक को मानसिक हिंसा के बराबर समझ लिया जायेगा और पुलिस को बिना वारंट जमानत रहित गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया गया है.. एक लड़की खुद चाहे किसी भी तरह के अनैतिक संबंधो में रहे वो भले ही आपसी संबंधो में धोखा देती रहे, वो भले ही कई अवैध संबंधो में लिप्त रहे पर सजा मिलेगी केवल पुरुष को!! यानि एक महिला को कुलटा बनने को प्रोत्साहित किया जा रहा है!!
आज यही सरकार उसी संसद से हिन्दू विवाह कोड को संशोधित करा चुकी है और अब इसके मुताबिक औरतो को तलाक लेना आसान हो जायेगा.. औरत तो पुरुष के किये तलाक के खिलाफ अपील कर सकती है पर अगर महिला ने तलाक की अपील करी तो पुरुष को कोई अधिकार नहीं होगा इस तलाक के विरोध करने का! आखिर ये सरकार चाहती क्या है?
आखिर दिल्ली में बैठी केंद्र सरकारें किन औरतो की उछ्रिन्खलता के लिए कानून बना रही है? आखिर इस पहले ही विधर्मी खंडित देश में जहाँ पर पारिवारिक मूल्यों को गहरा नुकसान पहुंचा है परिवार जोड़ने की जगह सरकार परिवार तोडना क्यों चाहती है? क्या दिल्ली में रहने वाली चंद अत्यंत महत्वकांक्षी और दुष्ट महिलाओं को आजादी खैरात में देकर सरकार अपना नंबर बढ़ा रही है?
साफ़ है की सरकार के सामने न तो प्राचीन धार्मिक नियमो का, सामाजिक स्थापित मूल्यों का कोई महत्त्व है न ही उसे धार्मिक वैज्ञानिक निति-विधानो का ज्ञान, उसका हर कदम मात्र अपने लिए लोकप्रियता बटोरने और राजनैतिक दांव पेंच करने के लिए होता है !!

आज तलाक दर दिल्ली और बॉम्बे जैसे कुछ तथाकथित बड़े शहरो में हाहाकारी स्तर पर पहुँच चुकी है और इस अचरजकारी तलाक दर वृद्धि के लिए जिम्मेदार है प्रमुख रूप से स्त्रियों की उछ्रिन्खलता जिसे उन्होंने हासिल किया है महिला अधिकार, महिला समानता इत्यादि का बैनर लगा के!! महिलाओं को पुरुषो जैसी शिक्षा देकर, उन्हें स्त्र्योचित धार्मिक व नैतिक सरोकारों से विमुख करके उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता देकर पथभ्रष्ट औरतें पैदा कर दी गयी हैं जो अब कहीं से भी स्त्री तो नहीं ही कही जा सकती हैं! अब ये औरतें न तो भली या भोली हैं, न सुकोमल सुभाषित, भावुक, संवेदनशील इत्यादि हैं जिनके लिए उसे जाना चाहता है और न ही इनमे स्त्र्योचित धैर्य है, न परिवार को जोड़ने का गुण I न ये औरतें परिवार के लिए सोचती हैं, न इनमे बच्चो के लिए मातृत्व बचा है, न बड़ो बुजुर्गो के लिए नैसर्गिक आदर ! अब तो ये पुरुषो की तरह बर्ताव करती हैं.. वे पुरुषो से कदम से कदम मिला कर चल रही हैं इसलिए पुरुष से प्रतिद्वंदिता भी करने का उनको अधिकार मिल गया है! अब कुछ ऐसी पत्नियों की खेप पुरुषो को मिलने लग गयी हैं जो पत्नी कम एक बिजनेस पार्टनर या दूसरी पुरुष सदस्य जैसी मालूम होती हैंI आखिर इस तरह की अधूरी महिलाएं खड़ा करके क्या पाना चाहते हैं हम?
एक तरफ मीडिया है जो एक स्टंटबाजी के तहत जाने किस तरह का सशक्तिकरण महिलाओ का करना चाहता है, उलजुलूल खबरे बनाकर, फर्जी लेख इत्यादि से वो जाने कौन सी काल्पनिक लिंग समानता स्थापित लाना चाहता है I पर जैसा हम सोच सकते हैं ये मीडिया का अपना धंधई स्वार्थ है जो इस तरह के शगूफे बनाकर छोड़ता रहता है और हमारी महान सरकार है जो उन्ही “बकवास कथा साहित्य, सांख्यिकी, तथ्य, तथाकथित शोध और खबरों” इत्यादि इत्यादि पर अंध विश्वास करके रोजाना के भाव से नए नए बेवकूफाना कानून बना डालती है जिनका सच्चाई और तार्किकता से कोई सरोकार नहीं होता!!
वास्तव में दिल्ली की सरकार महिलाओ को अवांछित बढ़ावा देने के लिए संवैधानिक सीमायें लांघ रही है जहाँ पर वो ऐसी समानता स्थापित कर रही है जो प्रकृति द्वारा प्रदत्त शाश्वत साक्ष्यो से पूर्ण विपरीत है I

आखिर इस तरह की अन्यायपूर्ण, अदूरदर्शी और मूर्खतापूर्ण बिल बनाने की सरकार की मंशा के पीछे कौन है?
कोई आश्चर्य नहीं की पहले से ही इस महिलावाची देश में महिला अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं..

बड़े ही गंभीरता से ध्यान देने का विषय यह भी है की दिल्ली के न्यायायलय भी इसी स्त्री स्वाधीनता के डंक के काटे हुए हैं I एक कोर्ट ने निर्णय सुनाया है की एक दिल्ली की नाबालिग स्कूली लड़की को विवाह पूर्व गर्भवती होने के कारन सरकार उसे छुट्टी और मुवावजा दे और परीक्षा में बैठने से छूट भी. दुसरे निर्णय में एक कोर्ट ने नौकरी के लिए बच्चे के देखभाल से मुंह चुराने वाली एक महिला को खुली छूट दे दी गयी की वो जो भी चाहे मनमानी कर सकती है क्योंकि उसे भी पति के बराबर ही नौकरी करने का अधिकार है और बच्चे की देखभाल केवल पत्नी का काम नहीं!!

ये सब देश के क्षुद्र बुद्धि एवं निम्न कोटि के न्यायिक व व्यावहारिक समझ एवं भ्रष्ट्मति का परिचायक है!! इन्ही तरह के कई कुंद-दृष्टि निर्णयों और नीतियों से देश का सही विकास रुका हुआ है!

तलाक के बाद महिला के लिए पति की अर्जित संपत्ति से भी तलाक लेने वाली पत्नी को हिस्सा देना एकदम ही समझ के बाहर है सरकार लगता है महिलाओं को तलाक के लिए शाबासी देना चाहती है..अगर पति के हठ से तलाक हो रहा हो या पत्नी के साथ बच्चे हो तो ये फिर भी न्यायपूर्ण है पर ये देखते हुए की आज भी न्यायालयों के अधिकार में ये प्रावधान हैं ये कानून नाजायज़ लगता है!!! ये उसी तरह का घटिया कानून है जिसमे पिता और पति दोनों की संपत्ति में महिला को हिस्सा दे दिया गया है!!

महिला से सहानूभूति के नाम पर हर तरह के उलजुलूल बेतुके काम किये जा रहे हैं. सरकार जिस तरह से भ्रष्टाचार एवं हर तरह के पाप करके भी अपने महिला चरित्रों के मुखौटो के कारण बच जा रही है वो इस देश के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैI

जिस तरह से मीडिया की नौटंकी बाजी और सरकार के नौसीखिया चाल चलन के चलते महिला को स्वतंत्रता दी जा रही है ये इस तथाकथित आधुनिक शहरी महिला को कहाँ ले जाकर पटकेगी ये तो नहीं मालूम पर इसमें समाज के साथ महिला का भी भयंकर नुकसान होगा ये तय है I

इस देश में हर बात को महिलाओं के नजरिये से बिगाड़ने का जो फैशन चल रहा है और जिस तरह से मीडिया बिना सोचे समझे ‘ताकत की घुट्टी’ पिला रहा है वो समाज को तोड़ेगा, गलत आदर्श रक्खेगा और समाज के लिए आत्मघाती होगा , वैसे जो भी हो इस बिल का सख्त विरोध होना चाहिए और महिलाओं को परिवार से इतर सरकार की बपौती समझने के इस तानाशाही फरमान का करारा जवाब मिलना चाहिए!
अन्तोनिया मैनो के इटालियन पूर्वाग्रह का कुछ इंतजाम तो अब होना ही चाहिए! आखिर इस देश का पुरुषार्थ कब जागेगा ?

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