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अभी अधिक वक्त नहीं बीता है … मिश्र, यमन, लीबिया, जोर्डन, फ़्रांस, रशिया, जापान इत्यादि छोटे देशो में जन सामाजिक आन्दोलनों और सोशल मीडिया एकटीविस्म ने युग प्रवर्तनकारी क्रांतियाँ ला दी और दशको पुरानी सरकारें बदल दी गयीं.. भारत को देखे तो तरस आता है की इस देश में वैचारिक संवेदना और नैतिक साहस तो अब कहीं बचा ही नहीं है.. हजार साल से उधार के अस्तित्व और बलात्कृत संस्कृति पर जी रहे इस जनसमुदाय पर अब किसी भी धर्म वाक्य, युद्ध नाद, सामाजिक आह्वाहन या समसामयिक आन्दोलनों का तनिक भी असर नहीं पड़ता I आश्चर्य होता है रोज तिल तिल कर अपनी जिंदगी जीते रोज ही जीने के बहाने तलाशते और रोज अपनी लाश को अपने कंधे पर ढोते रहने के बावजूद हम अपनी इस दुर्व्यवस्था के लिए जिम्मेदार लोगो को आंख उठा कर देखते भी नहीं .. I इस देश पर तो तरस खाना भी पाप लगता है क्योंकि यही वो देश है जहाँ क्रिकेट का मैच देखने के लिए लाखो करोडो की पागल भीड़ पैदा हो जाती है, किसी अभिनेता के फीता काटन समारोह के लिए या किसी फ़िल्मी तरीका का चिपचिपा फूहड़ नाच देखने के लिए भीड़ मर-मारकर थिएटर में पहुँच जाती है, ये भीड़ लाखो की संख्या में किसी नेता का प्रलाप सुनने के लिए धुप में आग भी सहन कर लेती है . पर किसी और उद्देश्य के लिए जिस में मनोरंजन न हो वहां कोई नहीं दीखता I
बड़े आश्चर्य की बात है की किसी प्लेटफॉर्म पर एक हाथ आये जेबकतरे पर अपनी जवानी दिखाने, सड़क पर किसी चोर को जमकर लतियाने या मुंह छिपा कर नेताओ को गरियाने में तो हम आगे रहते हैं..पर क्या कारण है, की देश के पैसे को जीभर कर लूटने वालो को हम जरा सा तरेर कर देख भी नहीं पाते?
ऐसे तो आज तक देश को आजाद करने वाले आजादी के मतवाले ही देश के लिए आवाज बुलंद करते थे जिन्हें तो हम आराम से भूल गए हैं पर आज वही देश के मतवाले जब देश की दूसरी (१८५७ के बाद दूसरी) आजादी की पुकार लगते हैं तो हम लोग बहरे हो जाते हैं. क्यों?
देश के पैसे को लगातार लूटते हुए सौ सालो से भी अधिक देश का बंटाधार करते नेताओ को हम और भी लूट-पाट करते देखते रहते हैं, उन्ही चोरो की सीनाजोरी भी देखते हैं जब वे खुले आम ईमानदार लोगों को कुचलकर मार डालते हैं, जब वे खुले आम अन्ना हजारे को देश द्रोही, बाबा रामदेव को ठग कहकर गाली देते हैं I
हमारी नसों में कितनी कायरता घुस गयी है की हम इंतजार करते हैं चोरो के खुद ही जेल का दरवाजा खोल कर उसमे घुस जाने का.. हम चाहते हैं की चोर और लुटेरे खुद ही अपने को सजा दें.. !! जैसे हम चाहते हैं की देश के दुश्मन आतंकवादी खुद ही फांसी चढ़ जाएँ या देश के खिलाफ साजिश करने वाले अपने आप ही आकर अपने हथियार रख दें!
क्या सच को प्रतिष्ठित किये जाने के लिए उसका ताकतवर भी होना जरूरी है?
लाखो करोडो बार सच दोहराए जाने के बावजूद, हर रोज उन अपराधियों की पहचान होने के बावजूद उन्हें छूने वाला कोई सिपाही नहीं है.. रोज वे लूट कर सरे आम शान से सबकी नजरो के सामने घुमते हैं.. हेकड़ी से फिर उसी जनता के सामने वोट मांगने पहुँच जाते हैं जिसका कई लाख करोड़ अरब पैसा वे चोरी कर चुके हैं.. और वैसे ही जनता उनकी जूतमपैजार करने की जगह उनका जूता सर पर उठाकर नाचती है I आखिर कैसे दिग्गी जैसे मुंह से गोबर गिराने वाले, या मनीष तिवारी जैसे निकृष्ट प्राणी ऊँचा बोलकर भी स्वस्थ्य रहते हैं?
क्यों अन्ना जैसो को भूखा रहकर आवाज लगानी पड़ती है? क्यों टीम अन्ना के सदस्यों को द्वेषपूर्ण आरोप झेलने पड़ रहे हैं और क्यों सफाई टीम अन्ना को देनी पड़ रही है?
क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन अन्ना का व्यक्तिगत कार्यक्रम है? क्या अन्ना के आन्दोलन के समर्थन के लिए उसका स्पौंसर होना चाहिए या डिस्ट्रीब्यूटर जैसे फिल्मो के लिए होता है? या किसी राजनैतिक दल का समर्थन जरूर होना चाहिए?
माना, (एक खास)मीडिया इसे एक तमाशे की तरह दिखाने, टीम अन्ना की खिल्ली उड़ाने और बस एक हद तक इसे प्रचारित करने और इसे किसी का व्यक्तिगत साधारण आन्दोलन बताने से अधिक कोशिश नहीं कर रहा.. हो सकता है की इसमें सत्ता पक्ष से डर एवं “दर” दोनों ही प्राप्त हो रहे हो.. पर, जिस तरह से हम भारतीय कश्मीरियों द्वारा ठीक नाक के नीचे दिल्ली में देश के तोड़ने पर परिचर्चा को बर्दाश्त कर लेते हैं ये देखकर यही लगता है की मीडिया और जनता के लिए अन्ना का आन्दोलन बस अखबारों के पन्ने भरने या स्क्रीन फूटेज और महज मनोरंजन तक ही महदूद है. देश का दाना पानी लेकर डेढ़ अरब हो चुके हममे अबभी भी राष्ट्र हित के लिए गंभीरता नहीं आई है.
कैसे पूरी संसद चोरो, लुटेरो, बलात्कारियो, गुंडों, डाकुओ से भरी पड़ी है और हमने अपने पूरे देश का दारोमदार उन्ही पर छोड़ दिया है? रोज खबरों में आने वाली संख्याएं सारी की सारी विपक्षी पार्टी की साजिश तो नहीं हो सकती? तो जब निश्चित हो चूका है की नेता देश का माल चोरी करने के लिए ही चुनाव लड़ता है, जब निश्चित हो गया की कोंग्रेसियो ने ही देश का सारा माल खाया है.. तो अब किस बात का इन्तेजार? क्या अब डिग्गियो जैसो को जवाब देना पड़ेगा की जब चोरी कोंग्रेस ने की है तो अन्ना जवाब भी कोंग्रेस से ही मांगेगा न? जब कोतवाल कोंग्रेस है तो जवाब भी उसे हो देना होगा न? जब सौ सालो से वोही देश पर कुंडली मारकर बैठी है तो इस सबका जवाब भी तो उसे ही देना पड़ेगा न? क्या अन्ना, अरविन्द, किरण, मनीष, रामदेव, राजेश पायलट, वायीएसार रेड्डी, शास्त्री, बोस, माधवराव सिंधिया आदि कोइ कोंग्रेस के परम प्रेमी हैं या थे जो नित्य उसके नाम की माला जपते हैं?
हम नेताओ को संसद भेजते हैं.. हम उनसे अपने स्वार्थ साधन की कामना रखते हैं, हम उनको हर कीमत पर समर्थन देते रहते हैं.. तो उनकी चोरी और डकैती पर शांत रहकर क्या हम उनके इस भ्रष्ट अपराध को अपना समर्थन तो नहीं दे रहे? क्या देश का नेता बनने वाला देश का मालिक हो जाता है? क्या उस जनता के नौकर को हक़ है की राज्य द्वारा प्रदत्त शक्तिओ और संसाधनों का दुरुपयोग वो अपने लिए करे? क्या उसे हक़ है देश के गरीबो को मिलने वाला पैसा खुद ही हड़प कर लेने का? तो, क्या इस देश की नियति है हमेशा गरीब रहने, गुलाम, गलीज और बेबस दिखने की?
जनता द्वारा चुना जाने वाला राजनीतिक व्यक्ति न तो राजा होता है और न ही देश का मालिक वो बस देश का सर्वमान्य सेवक होता है I
देश का नेतृत्व और राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करना बस अवैध या खानदानी तरीके से गद्दी पर बैठ जाना नहीं है..
राजनैतिक और सरकारी पद देश की जनता के प्रति एक बड़ी जिम्मेदारी हैं जिसमे जवाबदेही भी उतनी ही बनती है. अगर सफलता की तालियाँ एवं मालाए बटोरी जाती हैं तो गलती, अपराध एवं पाप के लिए सजा के लिए भी तैयार रहना चाहिए!
याद रक्खें, संविधान सभा या राष्ट्र नियंताओं ने देश की बागडोर हमें देते समय ये नहीं सोचा होगा की आगे ऐसे नेता भी आएंगे या ऐसे भी देश के हालत हो सकते हैं. तब, देश के लिए काम करने वालो को काम करने के लिए ही चुनना सोचा गया होगा पर वही विश्वासी रक्षक जब भक्षक हो जाये तो क्या किया जायेगा इसके लिए कोई तैयारी नहीं थी, हो भी नहीं सकती थी I पर, आज उन आदर्श स्थितियों से प्रतिकूलता में अब आवश्यक हो गया है की कार्यकारिणी के अलावा एक भ्रष्टाचार निरोधी तंत्र भी इस पूरे देश में होना चाहिए ! एक पूरा भ्रष्टाचार, चोरी रोकने के लिए एक अ -सरकारी और असरकारी तंत्र देश व्यवस्था में अब होना ही चाहिए जिसका काम ही सरकारी अधिकारियो, नेताओं, नौकरशाहों, ठेकदारो या गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज पर गहरी नजर रखना हो!!
अब हमें ऐसे एंटी करप्शन तंत्र को स्थापित करने की जरूरत है जिसमे गैरसरकारी लोग हो जिसमे समाज के सक्षम, सामाजिक स्तर पर काम करने वाले समाजसेवी, आन्दोलनकारी सुनिश्चित रूप से इमानदार समाज के गणमान्य लोग हो खासकर सेना के लोग, वैज्ञानिक, चिकित्सक, सामाजिक संगठनों के सदस्य, धार्मिक नेता, कुछ वकील, पुलिस, सेवा निवृत्त नौकरशाह और काफी संख्या में न्यायाधीश I ऐसी जागरूक सिविल सोसायटी हर दो या तीन साल में बदले जाने वाले सदस्यों से बनायीं जानी चाहिए जिसका काम सरकार को परामर्श देना, सरकारी भ्रष्टाचार की जांच और उसमे सजा देना इत्यादि हो I इसलिए बहुत जरूरी है की सभी वाणिज्यिक, शासकीय इत्यादि अन्य सभी नियमन संस्थाएं इन्ही के संरक्षण में रहें जैसे केंद्रीय सतर्कता आयोग और केंद्रीय जाँच एजेंसी -सीबीआई I
क्योंकि जनता के लिए खुद इन सरकारी नौकरों पर निगरानी रखना मुश्किल होता है इस मध्य अधिशासी संस्था, जिसे लोकपाल तंत्र कह सकते हैं, जिसे संवैधानिक अधिकार प्राप्त हो, के माध्यम से देश का नियमन करना आसान होगा!
पर इसका मतलब नहीं है की अभी तक घोटाला करने वाले नेताओ को छोड़ दिया जाये, जैसा अभी हो रहा है भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने पर बस नेता या अधिकारी पदमुक्त कर दिया जाता है पर उसपर कोई अभियोग नहीं चल पाता, मानों चोरी के लिए दुसरे नेता का नंबर लगा दिया जाता है. इसका मतलब ये नहीं की घोटाला करने वाले नेताओ का महिमामंडन किया जाये जिस तरह से मीडिया आज लालू यादव, सोनिया गाँधी (भले ही अभी मामले न चल रहे हो पर अपराध दिख तो गया ही है!), मायावती इत्यादि को देवी देवता बना दिया गया है!
वास्तव में, अब इन दुष्ट दागी नेताओ के संहार की जरूरत है.
अपने सगे संबंधियों को रणसम्मुख देखकर अर्जुन को होने वाला संशय हमें नहीं होना चाहिए क्योंकि अपराधी कोई भी हो उसे सजा मिलनी जरूरी है. वो भी अगर देश का द्रोही हो तो उसे सजा तुरंत ही मिलनी चाहिए चाहे वो किसी औरत का मुखौटा ओढ़े या फिर भोलेपन का नाटक करे! मात्र गीता और रामायण की अगरबत्ती घुमाकर अर्चना करने से ही कुछ नहीं होगा “महाभारत” को आत्मसात और उसे क्रियान्वित भी करना होगा I
और, अब यही समय है I
अगर इस भ्रष्टाचार का उसको पोषित करने के आरोप से हमें स्वयं मुक्त होना है तो कड़ा से कड़ा कदम हमें उठाना होगा … अपने समय का बहुमूल्य योगदान करें …राष्ट्र के आह्वाहन में सम्मिलित हो जाएँ… बाबा और अन्ना के साथ खड़े हो.. इन भ्रष्टाचारी रक्षको का संहार करें और अहिंसा की बात एकदम भूल जाएँ.. क्योंकि अहिंसा अपनों से की जाती है देश के दुश्मनों से केवल और केवल हिंसा से ही निपटा जाता है….
धर्म रक्षा के लिए शास्त्र का पढना ही जरूरी नहीं बल्कि शस्त्र उठाकर युद्ध क्षेत्र में उतरना भी उतना ही महत्वपूर्ण है!
मैं मीडिया से कोई उम्मीद नहीं करता क्योंकि मीडिया शुद्र वर्ण* है और उससे कोई खास उम्मीद नहीं की जा सकती इसलिए मीडिया के माध्यम से राष्ट्रप्योगी राष्ट्रहित के उच्च आन्दोलन में मीडिया से सहयोग की उम्मीद नहीं है.. मैं नहीं समझता की मीडिया (कुछ प्रबुद्ध सजग प्रिंट मीडिया को छोड़कर) अपनी जिम्मेदारी निभा भी पायेगा.. क्योंकि उसके अपने धन्धे स्वार्थ अधिक बड़े हैं और उसका अपना डर भी. पर, मैं युवाओ का आह्वाहन करता हु की वो अपने खून की कीमत साबित करें… फिर से नेताजी सुभाष की मांग को पूरा करें… देश की पहली वास्तविक आजादी के लिए कमर कसें.. और आँखों से दुविधा का चश्मा हटायें I
ये देश सम्राट समुद्रगुप्त, महान चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, शिवाजी, महारानाप्रताप, गुरु गोविन्द सिंह साहेब, गुरु अर्जुन सिंह जी, राजा पुरु, भीष्म पितामह, परशुराम, युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम का देश है, सुभाषचंद्र, बल गंगाधर तिलक, वीर सावरकर, सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद का देश है यह… ये समय उन सभी महान आत्माओं को जीने का समय है… उन्हें सही श्रद्धांजलि देने का समय है.. उन्हें आज नमन करने का समय है!!!
पर, मात्र वीर रस बोलने और वीर गाथा सुनने से क्या होता है.. आखिर कैसे होगा ये ?
पहले जरूरी है हम खुद के आलस्य, दंभ, भय, अन्यमनस्कता छोड़ें दुसरे को दोष देना छोड़ें, किसी दुसरे पर निर्भर रहना छोड़ें I आमोद, विलास, मनोरंजन, निज स्वार्थ विषय भोग से बचे.. टीवी चैनलों पर परोसी जा रही निकृष्ट सामग्री से बचें.. अगर कुछ करना है तो भोग त्यागें… सही शिक्षा लें, सही लक्ष्य साधन करें.. सही मार्गदर्शक का चुनाव करें…. टीवी और अख़बार आपके मार्गदर्शक नहीं हो सकते क्योंकि आप फिल्म देखने या सामान खरीदने बाहर नहीं जा रहे आप देश की रक्षा के लिए कमर कस रहें हैं III
कृपा कर के इस बार अन्ना और रामदेव को शर्मिंदा न करें…. कृपया भारत को इस बार लज्जित होने से बचा लें…. कृपा करें और देश को दुष्टों से मुक्त करें………
क्योंकि इस देश का अब और अधिक अहित नहीं हो सकता!
इस बात को गलत साबित करें “भारतीय कायर और पंगु हैं”… “भारतीय लड़ नहीं सकते”… “भारतीयों की नस नस में भ्रष्टाचार है”…
ये समय है खुद को साबित करने का….
जय भारत…..
ॐ तत्सत…..
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