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आरक्षण का लक्ष्य क्या हो

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (मायावतीकरण के बाद- छत्रपति शाहू जी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी) में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के एक छात्र ने परीक्षा में फेल होने के बाद नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या करने की कोशिश करी, उसे आपातचिकित्सा विभाग में कड़ी मशक्कत के बाद मौत के मुंह से निकाल लिया गया. अब वही छात्र जो की अनुसूचित जाति का है, ने अन्य सजातीय मेडिकल छात्रो के साथ मिलकर धरना और आन्दोलन किया है (यह बसपा के शासन में खास अधिक बढ़ गया है) की उसे फिजिओलौजी विषय में जानबूझकर फेल किया गया क्योंकि वह अनुसूचित जाति का है! वीसी के वक्तव्य देने के बाद भी छात्रो का आन्दोलन जारी है!!

KGMC

आरक्षण को कुछ जातियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाने के लिए संविधान में बस आरंभ के मात्र दस पंद्रह वर्षो के लिए लाने की व्यवस्था की गयी थी. पर तब से आरक्षण व्यवस्था के रूप में नेताओ को राजनैतिक हथियार के रूप में देश की हर व्यवस्था से खेलने का मानो सर्वाधिकार मिल गया है. अब किन्ही जातियों को सहानूभूति के नाम पर देश के सारे संसाधनों, सारी व्यवस्थाओ में सही योग्यता न होने पर भी खुली छूट बांटी जा रही हैI और ये सब सार्वभौमिक न्याय, नैतिकता और आदर्शो को ताक पर रखकर, देश के अधिसंख्य नागरिको के साथ अन्याय करके, योग्यता, कुशलता, मेहनत गुण और वास्तविक सामर्थ्य का अपमान करते हुए किया जा रहा है और जो अब राजनेताओ के लालच और स्वार्थ को सींचने का नियमित साधन बन गया है I

योग्यता और सुपात्रता का जाति से कोई लेना देना नहीं है और उसी तरह कुपात्रता और अयोग्यता का भी I जिस तरह से मात्र राजनितिक हवस के लिए देश के भविष्य और समाज हित के साथ खुले आम खिलवाड़ चल रहा है वो राजनितिक डालो के लिए तो फायदेमंद है पर समूचे देश के लिए गहरा खतरनाक बनता जा रहा है.
उच्च शिक्षा संस्थानों खासकर भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान, सरकारी चिकित्सा संस्थान जैसी जगहों पर कोई जाति नहीं होती सिवाय योग्यता के लिए प्रतिस्पर्धा करते अत्यंत कुशल एवं सकेंद्रित चुनिन्दा उम्मीदवारों यानि छात्रो के! जहाँ उच्चता का पैमाना और सम्मान का मानदंड एक ही होता है– सही, पर्याप्त और स्थाई गुणवत्ता !!

पर आरक्षण के नाम पर देश के हर प्रतिष्ठित, विश्वसनीय और निष्पक्ष शैक्षणिक संस्थान (अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान या मैनेजमेंट, बिजनेस (आइआइएम, आईबीएस) संस्थानों इत्यादि अन्य सभी उच्च शिक्षा केन्द्रों) को नेताओ के गंदे राजनीतिक खेल, सामाजिक कुंठा का बदला निकालने का, भीड़ जुटाकर नाजायज बात मनवाने और सरकारी जाति आधारित आयोगो के समर्थन से अवैध अधिकारों को पाने का अड्डा बना दिया गया है.
अब शिक्षण संस्थानों को अपने चुनौतीपूर्ण महत्वपूर्ण कार्यो में कम और सरकारों और कोर्टो को सफाई देने में अधिक व्यस्त रहना पड़ता है I
अब, दुनिया के मात्र छठे और भारत के एकमात्र- किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, 125 साल के देश के सबसे पुराने – चिकित्सा संस्थान, देश के प्रथम तीन वरीय और दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान और भारत के प्रथम चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्वमान्य (खासकर वरिष्ठ आचार्य) शिक्षको को अपने छात्रो को पढ़ाने, परीक्षा लेने और उन्हें प्रमाणिकता देने के लिए अब अंगूठा छाप नेताओ से लाइसेंस-सर्टिफिकेट की आवश्यकता पड़ गयी है! आज कोई जातिवादी आयोग, कोई निकृष्ट नेता या मीडिया निर्धारित कर रहा है की एक शिक्षण संस्थान किस तरह काम करे ! आज इसी का परिणाम है की वह छात्र जो सवर्ण छात्र के ९० परसेंटाईल (परसेंट नहीं!!)अंको के मुकाबले ४० या ४५ पर्सेंटाइल पाकर विश्व में किसी भी सामान्य अभ्यर्थी के लिए अकल्पनीय और दुर्लभ विश्वप्रतिष्ठित डिग्री पा जाता है और उस चुनौती के योग्य न होने पर आगे चलकर अपनी अक्षमता के जग-जाहिर हो जाने पर उसे स्वीकार भी नहीं करता और उसे स्वीकार कर सुधरने की जगह गलत दिशा में चला जाता है I और आज सर्वत्र उपलब्ध राजनैतिक संगठनो और दलो का संरक्षण लेकर राजनैतिक गुंडागर्दी और संवैधानिक ब्लैकमेल का रास्ता अपनाता हैI
कहते भी हैं की एक झूठ छुपाने के लिए कई कई झूठ बोलने पड़ते हैं!!
आज कोई नहीं है जो इस तरह के प्रशासनिक अत्याचार की भर्त्सना करे या इस पर रोक लगाने की मांग करे.
बड़े शर्म की बात शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सबसे प्रमुख क्षेत्रो में जो देश का भविष्य बनाते हैं और जो विशिष्ट राष्ट्रीय स्तम्भ हैं, में ही इस तरह का अधः पतन लाया जा रहा है जबकि फिल्म, राजनीती, होटल, व्यवसाय, ऑटो इत्यादि में कोई आरक्षण नहीं दिया जाता यहाँ तक की भूख और कपड़ो के लिए भी कोई आरक्षण नहीं मिलता.

अब स्थिति आ गयी है की देश से हर आरक्षण व्यवस्था को तुरंत प्रभाव से ख़त्म किया किया जाये I देश को निष्पक्ष, त्रुटिरहित और राजनैतिक हस्तक्षेप -घोटालो से रहित शैक्षणिक मूल्याङ्कन एवं परिक्षण व्यवस्था को सुनिश्चित करना है नाकि आरक्षण को सीमा से बाहर ले जाकर देश पर थोपना है I वर्तमान आरक्षण व्यवस्था राष्ट्र हित पर दोहरा मार करती है!

आज स्थिति ये है की अरक्षित सीटों को किसी भी कीमत पर भरा जा रहा है, विश्वविद्यालय, संस्थान व हस्पताल इत्यादि के गंभीर अपकर्ष की कीमत पर भी अरक्षित पदों को तय सीमा से भी नीचे अंको वाले अभ्यर्थियो से भर दिया जा रहा है. अन्दर की स्थिति ये है की उच्चतम न्यायलय द्वारा निर्धारित न्यूनतम ४०% प्राप्तांक सीमा को भी हटाने की चाल चली जा रही है और ये कई उच्च शिक्षण संस्थानों में चल रहा है!! जबकि उच्च संस्थानों में सामान्य सेलेक्शन ही ७० % या उससे अधिक पर होता है!
हम समझ सकते हैं की कितना अंतर होता है यहाँ योग्य और अयोग्य अभ्यर्थियो में और कितना अहित होगा रोगियों का और समाज का I
सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियो के योग्य होने के बावजूद सीटें नहीं भरी जाती भले ही उससे संस्थान और जनता का अहित होता रहे! आज यही निम्नीकरण हर संस्थान, सरकारी महकमे, हर पद और सीट पर किया जा रहा है और वोट बैंक की राजनीती करके देश की कार्यकुशलता को घटिया बनाने का पूरा दूरगामी इन्तेजाम किया जा रहा है I बड़े ही शर्म की बात है की एक अयोग्य आरक्षित छात्र जो शायद किसी और क्षेत्र में सफल हो सकता हो उसे जबरदस्ती उच्च शैक्षणिक पदों और अधिकारों पर बिठाया जा रहा है, जबरदस्ती डॉक्टर बनाया जाता है. और अब तो आरक्षण की खैरात पाना भी अपना अधिकार बताया जा रहा है!! और डरावना ये है की ये बदस्तूर जारी है और सरकारी तंत्र में स्थाई रूप से शामिल हो गया है!

आरक्षण व्यवस्था इस तरह का मूल्याङ्कन है जिसमे किसी अभ्यर्थी की योग्यता उसके पीछे कड़ी भीड़ के आकार से निर्धारित की जा रही है जैसा चुनावी राजनीती का तरीका है.. यानि जो संख्या में अधिक होगा वोही डॉक्टर, इंजीनिअर, पाइलट, वैज्ञानिक, शोधार्थी, खगोलज्ञ, ज्योतिषी, रासयांविज्ञानी इत्यादि इत्यादि बनने की भरपूर योग्यता रखेगा I यानि जिसके पीछे भीड़ है वोही सबसे अधिक योग्य है!! जिस तरह की मूर्खता हम पहले करते रहे हैं अब उसी को अधिकारिक रूप में मान्यता मिलती जा रही है!

बड़े ही बेशर्मी और ढीठता की बात है की शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण को हटाकर योग्यता को पैमाना बनाने की मांग को किन्ही जातियों के प्रति किसी सामंती मानसिकता, पक्षपात और अन्याय का सूचक बताया जाता है जो अत्यंत शर्मनाक और निंदनीय है.
एक गुरु एक शिक्षक के लिए अच्छा सुयोग्य छात्र ही सबसे प्रिय होता है वही उसका सबसे प्रिय सबसे बड़ा शिष्य होता है जबकि गलत तरीके, यानि अयोग्य होते हुए भी सिफारिश, पैसे या ताकत का इस्तेमाल करके आया हुआ या आरक्षण के बल पर आया हुआ छात्र अप्रिय लगता है. इसीलिए एम्स जैसी जगहों पर अक्षम विद्यार्थियो को बर्दाश्त नहीं किया जाता उसमे समुदाय, जाति या धर्म से कोई लेना देना नहीं होता. इसमें कही भी कुछ गलत नहीं है..वास्तव में, एक चिकित्सक के लिए इन क्षुद्र भेदों का कोई अर्थ नहीं होता!
जब सभी क्षेत्रो में गुणवत्ता चाहिए जब फिल्मो में सुन्दर नायिका चाहिए, कुश्ती में तगड़ा पहलवान चाहिए, क्रिकेट में जबरदस्त बल्लेबाज चाहिए, जब शादी में कमनीय पत्नी चाहिए और जब प्रधान मंत्री पद या राष्ट्रपति के पद के लिए कोई उल्लू का पट्ठा या उल्लू की पट्ठी चाहिए (इन संवैधानिक पदों के लिए पूरे सम्मान के साथ!) तो एक डॉक्टर जो लोगो की जान बचाएगा और स्वाश्थ्य रक्षा करेगा, बड़े बड़े शोध अनुसन्धान करेगा और देश का नाम ऊँचा करेगा और मानवता को बहुत कुछ प्रदान भी करेगा, के लिए सबसे उच्च गुणवत्ता नहीं होना चाहिए? क्या ऐसे स्थानों पर आरक्षण को पूरी तरह हटा लिया नहीं जाना चाहिए और वहां पर आरक्षण के नाम पर राजनीती करने वालो पर कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए? एक मौका मिलते ही चिकित्सको और स्वयं स्थापित समर्थ शिक्षको को अपमानित करने का मौका न चूकने वाले मीडिया से मैं ये पूछना चाहूँगा की ये गन्दी राजनीति शैक्षणिक केन्द्रों से दूर होगी या नहीं?
पर जिस तरह से देश का हर कोना सड़ चूका है और लुहेड़ाबाजी करने वालो को कुछ भी मनमानी करने की छूट मिल गयी है अपने अलग ही पैमाने बनाने वाला मीडिया भ्रष्ट विचार फ़ैलाने में पूरा योगदान कर रहा है उससे यही लगता है की हारे कुंठितो को अपनी भड़ास निकालने का मौका आगे भी मिलता रहेगा !

मुझे ये राजनैतिक सफाई देने की जरूरत नहीं है की मैं किसी भी जाति के प्रति दुर्भावना या पक्षपात नहीं रखता* मैं वास्तव में एक शिक्षक (और चिकित्सक) के रूप में उन सबको इस देश का सम्माननीय नागरिक और हर अधिकार एवं कुशलता के लायक समझता हु पर तभी जब अभ्यर्थी स्वयं को यथार्थ में उस पद, अधिकार के लायक साबित कर ले I वो भी खुद ही नाकि किसी राजनीतीक जुगाड़ या जोर जबरदस्ती से !!

हमें जानना चाहिए की मेडिकल क्षेत्र पहले ही पैसे, सिफारिश के बल पर इस फील्ड में आए मुन्ना भाइयो(हर साल औसतन लगभग २५ %*), प्राइवेट कोलेजो, फर्जी विदेशी कोलेजो से पढ़कर आए घटिया छात्रो, मेडिकल संस्थानों में व्याप्त राजनैतिक हस्तक्षेप और सरकारी उपेक्षा से पहले ही त्रस्त और दुर्व्यवस्था* के शिकार हैं उन्हें सुधारने की जगह गंवार नेता आरक्षण से उनका और बंटाधार कर रहे हैं जो अत्यंत शोचनीय है और इसका निश्चय की कुछ किया जाना जरूरी हो गया है. अन्यथा किसी भी बड़े आन्दोलन से इंकार नहीं किया जा सकता पर आखिर सरकार इस तरह के पटरी तोड़, आगजनी और कोलाहल आन्दोलनों का इंतजार क्यों कर रही है?? (*आगे कभी अन्य लेख में)
आरक्षण का लौलिपौप वास्तव में नेताओ के लिए स्थाई वोटबैंक बनाने का एक तरीका है और जिसमे विभिन्न जातियों के लोग सामान्य स्तर पर श्रम करने और संघर्ष में स्वयं को विकसित नहीं कर पाते जिसे उन्हें अपने पैरो पर खड़ा होने में कोई वास्तविक मदद नहीं मिलती I बस मुफ्त सामान पाने के सुख और किसी को दान देने का दंभ यही इसका कुल परिणाम है, पर राष्ट्रीय सम्पदा या अधिकार कोई मुफ्त में बाँटने और युही देने की वस्तु नहीं है I
सभी देशवासियों को अपना कौशल दिखने, अपना परिवार चलने और धन कमाने का परम अधिकार है I सही है I पर देश को भी न्याय और राष्ट्रहित को अक्षुण रखने का अधिकार है!
आखिर देश के प्रबुद्ध, विचारशील, शिक्षित और आधुनिक ब्राहमणों* को राज्य नीति निर्धारण एवं सामाजिक मार्गदर्शन के लिए वरीयता कब दी जाएगी? आखिर कब तक भ्रष्ट, गंवार, अपराधी और निकृष्ट राजनीतिज्ञ और उनके चेले चपाटे देश को पथभ्रष्ट करते रहेंगे?

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आखिर कब तक ये आरक्षण का वेताल विक्रमादित्य के कंधे पर लटका रहेगा और समूचे देश को श्मशान बनाये रहेगा?

आखिर कब देश के अन्य प्रबुद्धो की आँख खुलेगी? आखिर कब तक गुण और योग्यता का अपमान देश सहता रहेगा? आखिर कब तक एक अन्याय के नाम पर दूसरा बड़ा अन्याय किया जाता रहेगा? आखिर कब किसी परदादे के दोष की सजा उसके संतानों को दी जाती रहेगी ? आखिर कब तक नेता और सरकारे अपनी अक्षमता को आरक्षण देकर जनता को मूर्ख बनाते रहेंगे?आखिर हम किस तरह की बराबरी चाहते हैं? या नेताओ के दुराग्रह से बराबरी आ जाएगी?

आखिर कब बंद होगा ये शासकीय अत्याचार?

कब???
इसका त्वरित उत्तर आना आवश्यक है!! क्या हमारे पास है इसका कोई उत्तर?

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