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ये है आज की अबला नारी जिसकी पूजा करनी है

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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आज भारत देश की तथाकथित मायानगरी चर्चा में है — वैसे तो रोज बस इसी नगरी का मसाला चर्चा में होता है कभी फिल्मो की छीछालेदर दार गपशप, कभी किसी धन्ना सेठ का महल या दौलत की नुमाइश कहीं किसी डी भाई या माफिया का सड़क पे कत्लेआम, या कभी राजनीतिज्ञों का तमाशे की नगरी में ‘आदर्श’ तमाशो की सनसनी.. आज कुछ और सनसनी हैI यूँ तो होती रहती है पर, बम्बई तो बाकि देश से ऊपर उठ चुकी है यहाँ उत्तेजना, रोमांच, नयापन मजा वैसा नहीं होता जैसा बाकि भारत देश करता है बम्बई सपने ही नहीं बनाती बहुत कुछ और बनाती है..!!
बम्बई के ऊँचे रंग महलो में से एक में इस सपनीली दुनिया के बाशिंदे किसी और दुनिया का टिकेट लेने को जुटते हैं .. अधिक ऊँचे सपनो की दुनिया.. ड्रग्स की दुनिया, “रेव” की दुनिया.. इस में खास बात ये रही की इस नशाखोरो की पार्टी में पुरुष तो खैर जितने भी हों पर ५५ में से उस काली आवारा, बदहोश रात को ३६ लड़कियां भी पुलिस के चंगुल में आयीं.. कोला, फ्रूट ड्रिंक या दारू पीती हुई नहीं ..I लड़कियां, स्त्रियाँ, महिलाएं, बेचारियाँ, नाजुक “देवियाँ” जिन्हें हम शायद ऐसे ही जानते हैं.. इतनी संख्या में लडकियां धुर दारू के नशे में धुत्त, ढेरो अन्य पुरुषो के साथ ऊपर नीचे, मदमस्त सुरूर में डोलते ड्रग्स के अपने नसों में जाने का इंतजार कर रही थीं.. पर ए सी पी विश्वास नगरे पाटिल की ५० लोगो की पुलिसिया टीम ने इन अबला नारियो की निर्मल छवि को तारतार कर दिया.. ऐसा नहीं है की ये लड़कियां गलती से टहलते हुए दस मंजिली ओक्वुड होटल की पूल साइड टेरेस पर रूह आफजा पीने गयी थीं.. या फिर किसी ने इन्हें बरगला कर वहां धोखे से बुला लिया हो, या ये भिन्डी खरीदने जा रही थी और किसी ने चाय पे बुला लिया हो..
ऐसा नहीं है की ये घटना आज ही हुई हो..ऐसा नहीं है की कोई पहली बार रेव पार्टी पर दबिश हुई हो, या डांस बार में छापा पड़ा हो और लड़कियां न पकड़ी गयी हों, या देह का बाजार लगाए सीमा और पल्लवी ना पकड़ी गयी हों.. पर देखने और सोचने वाली बात ये है की महिलाओं को देवी साबित करने वाला उन्हें मासूम पवित्र बताने वाला, उन्ही सती भारतीय नारियो को चमका कर अपनी कमाई करने वाला ‘मीडिया’ केवल आईपी एल के कुछ खिलाडियों की कहानी ही उछालता रहा पर किसी के मुंह से आजतक, और आजके पहले भी, इन जवान महिलाओ की नशाखोरी प्रवृत्ति पर एक बार भी दो शब्द नहीं निकलते.. यही मीडिया है जिसे महिला के आसपास से गुजरने वाले हर तिनके से भी शिकायत होती है, जिसे स्त्री नाम की किसी भी चीज के साथ होने वाले घटना में शोषण, अत्याचार, बेबसी और पुरुषवादी मानसिकता का कीड़ा दीखता है, स्त्री के किये हर करतूत में वीरांगना का जौहर दीखता है और जिसे हर दरो -दीवार हर स्त्री का असम्मान करता हुआ दीखता है.. उसे इस खतरनाक प्रवृत्ति की भनक भी नहीं पड़ी!! हो सकता है कल को ये खबर बने…ये तो बम्बई की आधुनिक बाईसवी शताब्दी की क्लास लड़कियां हैं जो किसी मामले में कम नहीं … ये भारत के नए युग की नयी नायिकाएं हैं जो समाज के सड़े गले रूढ़िवादी, पिछड़े नियमो को तोड़ने के लिए पैदा हुई हैं.. या ये भी हो सकता है की ये खबर बन कर आ जाये की कुछ मासूम भले घरो की लडकियों को झूठे मामले में फंसाया था.. या उनका ड्रग्स लेना साबित नहीं हुआ..!! इस मीडिया के चहेते फ़िल्मी कलाकर जैसे क्योंकि सास भी कभी बहु थी की “गंगा” शिल्पा सकलानी, अपूर्व अग्निहोत्री और दर्जनों अन्य फ़िल्मी कलाकारों को तो वहां होना का हक़ बनता है जिसे इस जैसे “सभ्य मान्यवर” सेलिब्रिटियो के लिए कोई बड़ी बात नहीं माना जाना चाहिए… मीडिया क्या कर रही है और पुलिस क्या कर लेगी ये तो खैर मुद्दा नहीं है, मुद्दा ये है की कूड़े की जमीं पर बसाया गया ये शहर कितनी गन्दगी पैदा कर रहा है ! ये शहर जहाँ फिल्म इंडस्ट्री का सबसे स्वस्थ रूप रूपहले परदे तक ही दीखता है, जो शहर (भौतिक और नैतिक)कचरे पर बैठा हुआ है, जहाँ वेश्याओ के भाव सातवे आसमान पर हैं, जहाँ नाचने गाने वाले मसखरो की पौ बारह है, जहाँ पैसो पर मटकने वाली बार डांसरो के संवैधानिक और सामाजिक अधिकार दबंगई से गिनाये जाते हैं, जहाँ देश और अब विदेश की जानीमानी वेश्याओं की आमद होती है, खुशामद होती है, जो बॉम्बे की पूजनीय देवियाँ है क्योंकि, वो कइयो का धंधा चलाती हैं जिनमे मीडिया सबसे बड़ा लाभार्थी है.. वही आदेश दे रहा है –यही तो इन आधुनिक देवियों का पुजारी है वो ही देवियाँ जिनके बारे में वेदों में लिखा है की पूजो इन्हें….
ये है वो बम्बई नगरी जहाँ देह बेचने वाली बड़ी बड़ी कलाकार आती हैं और जिनके बड़े बड़े मंदिर बना दिए जाते हैं.. सारी बम्बइया हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ही पारो, उमराव जानो, डौली, चंपा, शन्नो, काली बाड़ी की आराधना, चांदनी, जूली, चमेली, पाकीजा की उपासना में लीन रही है.. वेश्याओं के लिए तो परम अनुकम्पा रखने वाले फिल्म उद्योग को मीडिया का साथ-साझेदार मिला है.. आज हालत ये है की विदेशो से अन्न का आयात हो न हो पर आतंकवादियों के अलावा जिसका आयात जोशोखरोश से हो रहा है वो है ‘गोरी’चमड़ी का I विदेशो की पहुंची हुई वेश्याएं भारत में काम ढूंढती पहुँच रही हैं और भारत जिस तरह से आतंकियों की गोली के लिए शरीरो का इन्तेजाम कर रहा है वैसे ही इन बाजारू औरतो के लिए बाजार भी सेवाभाव से मुहैया कर रहा है.. यही मीडिया है जो महिलाओं के लिए अलौकिक उपमाएं ढूँढने अरुशी, जेसिका, मधिमिता आदि की समयातीत मातमपुर्सी, मारिया सुसैराज जैसियो की वीर्गाथाये गढ़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता.. आज कर्कश आवाज में चुप है!!
शायद इसी तरह की बराबरी और महिला सशक्तिकरण की तमन्ना है हमारी.. जाने क्यों इस मीडिया को तालिबान अपना दुश्मन नजर आता है और जाने क्यों हम इस नाम से डरते हैं .. आखिर तालिबान ऐसी ही महिलाओं को सख्त सजा देता है.. पर इस देश का क्या जहाँ महिला की इच्छा ही कानून है और हर आदमी की जरूरत ही धर्म! क्यों इस मीडिया को हर महिला के लिए इज्जत, सम्मान, पूजा, आराधना वगैरह वगैरह ही खैरात में भरपूर चन्हिये क्यों नहीं कोई ऐसी महिलाओं को सख्त सजा देने की मांग करता? क्यों नहीं कोई इन महिलाओं को सही सिखाने की बात करता है?
जाइये मालूम करिए इन शहरो में ये तथाकथित मजलूम, अबला महिलाएं क्या क्या कर रही हैं… धड़ल्ले और ठसक से अपना देह बेचती हैं, तीन महिला पत्रकार तो इसी में पकड़ी गयी हैं (बावजूद इसके की मैं उनको छूट देदूं की किस टाईप की पत्रकार थीं वो!) हैं बड़े जलवे से ब्लैकमेल करती ऐयाशी की जिंदगी जी रही हैं, फ़िल्मी देवियाँ फिल्मो में काम मिले न मिले हर रोज देह बेचने का साफसुथरा, पक्का पेशा तो मिल ही जाता है! जाने किस “आगे’ बढ़ने की चाह में अपनी देह की नीलामी कर प्रीती जैन जैसी हजारो लड़कियां कइयो को अपना शिकार बनाती हैं और जब इस काली करतूत में सफल नहीं होती तो उलटे आरोप लगा कर मासूमीयत का ढोंग रचाती हैं और इसमें कानून का गलत फायदा उठाती है!! अब इन औरतो को या ऐसी औरतो का महिमा मंडन करने वाले मीडिया को कैसे कोई (सम्मान क्या) लिहाज दे सकता है?? कैसे इन औरतो को पावन, अबला, बेचारी, शालीन, संस्कारी भारतीय नारी माना जाये.. ऐसा करने के लिए तो पुरुष को तो नपुंसक होना पड़ेगा.. इस तरह के ढेरो बम्बई और ऐसे तथाकथित आधुनिक-खुले-उन्नत शहरो में तो मिल जायेंगे.. पर बाकि देश का क्या करा जाये?

क्या यही हैं भविष्य की माताएं जो शरीर में जहर भरकर पुरुषो की बराबरी के नाम पर हर कुकर्म करना चाहती हैं?
पुरुष से कही कहीं अधिक स्त्रियों में, अल्कोहल और उससे कई गुना अधिक घटक तत्व ड्रग्स सेवन करने वाले के शरीर में गहरा विकार पैदा करते हैं*.. खासकर जीनोम(क्रोमैटिन मटेरिअल) में यानि स्त्री के खुद के शारीरिक तंत्र पर कुप्रभाव के अलावा यह विकार भविष्य में होने वाली संतति पर अमिट और लाइलाज विकृति पैदा करते हैं ! इस तरह से अपने घर की स्त्रियों को कुछ भी करने के लिए छोड़ देने वाले पुरुष क्या चाहते हैं, क्यों वे इस देश और उस समाज की नसल बर्बाद करना चाहते हैं? आखिर ये किन पुरुषो की बेवकूफी और कैसी स्त्रियों की अकड़ है जो क्षणिक बेहूदगी के लिए अपनी आने वाली संतति ख़तम करना चाहते हैं??
देश के कुछ कोने सारे नैतिक और सर्वस्थापित सामाजिक नियमो से रहित हो चुके हैं ये क्षेत्र समूचे भारत देश से विपरीत कोई अलग किस्म का धर्म और समाज बना रहे हैं जहाँ धार्मिक शोध, विमर्श और उच्चतम मान्य हिन्दू विश्वासों की कोई जगह नहीं है.. ये हिस्से भारत का कैंसर साबित होंगे और होने भी लगे हैं …
ये तो तय सी बात है की भारतीय समाज में और खासकर बम्बई जैसे तेजी से अंधे होकर भागते शहरो में, लडकियों के अभिभावक अब अपना दायित्व पूरा भूल ही चुके हैं, बम्बई की विधर्मी अहिंदू जनसँख्या में खिचड़ी संस्कार और अपधर्म खून में शामिल हो गया है. बम्बई देश के लिए गंदगी पैदा कर रही है.. जिस शहर का कोई चरित्र नहीं है, जो वेश्याओं के पसीने से फलफूल रहा है वोही शहर-संस्कृति सारे देश के बच्चे को जहर चटा रही है!! अपरिपक्व, कमसिन, बरगलाने योग्य कच्चे मस्तिष्को और उद्वेगों पर सवार होकर अपना फायदा बनाने वाले इन धंधेबाजो के हाथ में ये मायानगरी खेल रही है और उसी जहरीली फक्ट्री की जहरीली रसद देश के अन्य हिसो में पहुंचाई जा रही है.. “ये तो बस कुछेक अपवादों तक सीमित है”, “ऐसा तो हर जगह होता है”, “बड़े शहरो में ये मामूली बात है” कह कर अब इन बातो को टाला नहीं जा सकता.. शर्म की बात है की ये देश न अपनी जान बचाने और न ही अपना मान बचाने के लिए सख्त मुद्रा में आने को तैयार हैं!!

इस बम्बैया फिल्मो की तारिकाएँ हर दूसरी फिल्म में गन्दी से गन्दी गालियाँ देती, नाम काम कमाने पैसा बनाने को घटिया से घटिया हरकत करती, माँ-बाप की नसीहत, समाज-धर्म के हर बने बनाये नियम, मान्यताओ का खुले आम मजाक बनाती, अपनी उघाड़ देह का फूहड़ प्रदर्शन करती, छिछोरेपन में विदेशी स्त्रियों को भी मात देती (और फिर भी भारतीय नारी की दुहाई देती) ये महिलाएं नैतिकता का अपभ्रंश करती रोज समाज को मुंह चिढ़ा रही हैं और इस देश के पुरुष जीभ निकाले लंपटो की तरह उनको निहार रहे हैं…. शर्म है!!

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