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बधाई हो बधाई हो विपदा आई है…

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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५००० करोड़ रुपये का नुकसान, २५ पुल १५०० सड़को का विध्वंस, एक ही इलाके में ६० से अधिक गावों का सफाया.. हजारो से अधिक की मौत और भारत सरकार का कहना १०२ से अधिक मृतक.. जबकि एक खबर के मुताबिक इस बार लगभग २ लाख गाड़ियाँ आयीं उत्तराखंड में !! … ७० हजार से अधिक अभागे हिन्दू श्रद्धालु अभी भी पहाड़ में फंसे सरकारी सहायता या फिर प्राकृतिक आपदा के अगले झपेडे की आशंका में उन्ही दुर्गम स्थितियों में हैं…
श्रद्धालु नासिक, सहरसा, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, दिल्ली से लेकर देश के हर कोने से आए पीड़ित पुकार लगा रहे दीखते हैं “हम मौत के मुंह से लौटे हैं”… “हम अपने माता -पिता को ढूंढ नहीं पा रहे”.. “मैं अपने पिता को अपने सामने खुद से दूर जाते देखता रहा, मैं उन्हें वापस नहीं ला पाया”.. “रात १६ जून को बादल फट कर हमारे पीछे मौत बनके आए”.. “कोई हमारी मदद के लिए नहीं था, सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं थी” …”वहां सिर्फ मौत थी, पानी, पत्थर पर कोई सरकार नहीं ..” … “हमारी मदद किसी ने नहीं की ..” “सिर्फ सेना के जवान ही पहुंचे हमारी मदद के लिए”
मीडिया के गिरोहों में भी हलचल है…एक ब्रेकिंग न्यूज़ जो बनी है.. खबर के मसाले का खजाना… कैमरों के शाहरुख़ खान फटाफट दौड़ पड़े हैं…

जब हजारो भारतीय पानी के सैलाब में मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे..तब भारत सरकार के नेतागड़ अपने नेता राहुल गाँधी का जन्मदिन मना रहे थे..और भारत क्रिकेट मैच देख रहा था.. सभी चैनल पर संगीत और मजाक चल रहा था..

कई बातें हैं सोचने वाली ………….

हजारो सालो से ज्योतिर्लिंगों, शक्तिपीठों पर श्रद्धालु हिन्दू की तीर्थ यात्रा चलती रही है.. विक्रमादित्य के युग से लेकर पिछले १०० सालो में.. अमरनाथ, शबरीमला, हरिद्वार, बदरीनाथ, कामख्या, नासिक, मदुरै वैष्णो देवी, हेमकुंड साहिब इत्यादि … पर हम सबको ध्यान है.. इन सभी जगहों पर कोई सरकार नाम की चीज नहीं दिखती.. सेना होती है एकाध पुलिस दिख जाती है पर इन किसी भी दुर्गम जगहों पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिखाई देती जो यहाँ अहसास करा सके की इस देश में हिन्दू तीर्थ यात्रियों के लिए कोई सोचने वाला है भी.. जिन तीर्थ स्थलों पर लाखो हजार यात्री एवं पर्यटक हर साल निरंतर पहुँचते हो, वहां सरकार द्वारा स्थापित ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिखती जो साल में हजारो निपुण इञ्जॆनिअर और प्रद्योगिकी विशेषज्ञों को पैदा करने वाले देश में देखि जानी चाहिए… चाहे वैष्णो देवी हो या केदारनाथ वहां बने धर्मशाला हो दुकाने हो या अन्य कुछ वो बस क्षेत्रीय निवासियों द्वारा बनाया गया होता है इसमें भारत सरकार का एक हाथ भी नहीं होता. क्षेत्रीय निर्माण बेहद बेतरतीब, दुर्व्यवस्थित अत्यंत गन्दगी और तीर्थ यात्रा के अर्थ को समूचा नष्ट कर देने वाला होता है..
सरकार तो वहीँ दिखती है जहाँ कोई लाभ उठाने का मौका हो. जनता की सुरक्षा हेतु ही नौकरी पे लगाये गए सुरक्षा बल मात्र दिल्ली और राज्य की राजधानियों में नेताओ की व्यक्तिगत गुलामी में लगे हुए हैं जबकि बचाव का भार, वो भी आपदा के बाद, हमारी सेना के ही कंधो पर. है.
यह प्राकृतिक आपदाएं हर साल बिना नागा और लगभग हमेशा पूरी सूचना के आती हैं.. मुंबई में बाढ़ आती है, दिल्ली के सीने में यहाँ तक की सबसे बड़े आधुनिक कहे जाने वाले इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में बाढ़ आ जाती है.. गुडगाँव, हिमांचल, बिहार, उतरप्रदेश में हर जगह हर साल बाढ़ की त्रासदी आती ही है पर यह भारतीय सरकार जोकि पिछले सौ साल से इस देश के सिंहासन पर बैठकर शासन कर रही है, हर बार बने बनाये स्क्रिप्ट पर अभिनय करने के लिए तैयार बठी होती हैं.. प्रधान मंत्री और फर्जी प्रधान मंत्री हवाई दौर करके हवा में मजा लेकर फिर देश की गाढ़ी कमाई को अपनी वाहवाही और राजनैतिक श्रेय के लिए बाँटने के लिए तैयार बैठे होते हैं. यह नाटक हर साल बार बार दोहराया जाता है..
लगता है की स्त्र्योचित आचार में अभ्यस्त यह देश और सरकार मात्र रोने-गाने बेचारे-अभागे बने दिखने के लिए ही मात्र श्रेष्ठ है!! इस सरकार के पास किसी भी समस्या का हल नहीं है बस मूर्द्नगी और हिजडेपन के प्रदर्शन और साड़ियों के पीछे छुपकर खबरों के दबने, आर्तनाद शांत होने दुःख बेबसी दिमागों से गायब होने और अगले बर्बादी के अवसर की प्रतीक्षा ही इसकी कार्यशैली है.. “भारतवासी दिलखोलकर आपदाग्रस्त लोगों की मदद करें ” कहकर और शायद अब विदेशी सहायता की भीख मांगने को तैयार इस देश की सरकार का बनाबनाया शगल हो गया है!

हाँ, ठीक है ये दैविक या प्राकृतिक विपत्ति है …… और, ११.५ करोड़ वर्ष पुराने विश्व के इस सबसे नवयुवा पर्वत श्रृंखला के अंचल में में ये आज नहीं करोड़ों सालो से होता आया है.. हिमालयी श्रृंखला में कई पहाड़ मिटटी और भुरभुरे पत्थरो और राख से बने भी होते हैं… कभी भी स्खलन को पैदा कर सकते हैंI पर इश्वर प्रदत्त पर्वतीय पेड़ो की गहरी जड़ो के कारन पहाड़ो के ऊपर की मिटटी बहने से रोक ली जाती है.. पर अब यह लालची इंसान पृथ्वी की हर जगह पर कब्ज़ा जमाना चाहता है.. बड़ी बड़ी जंगलो की चादर उधाड़ने का काम सालों से चल रहा है … मोबाईल टावर, होटल, घर मकान बनाने के लिए कोई भी कहीं भी पहाड़ खोदे जा रहे हैं.. पहाड़ो के भंगुर ढाल और यहाँ तक की शिखर भी अवैध निर्माण बनाने के लिए मनमाने ढंग से तोड़े और काटे जा रहे हैं..
पहाड़ का आदमी कहता है की हमारे यहाँ विकास नहीं हुआ..इसलिए देश के फेफड़ा और हृदय कहे जाने वाले एक उत्तराखंड के १३ जिलो में कुल मिला ४२२ बांधो का नियोजन हो गया हजारो की संख्या में बाजारू निर्माण बनने लग गया ताकि रिश्वत और दलाली में कमाई की जा सके… दर्जनों पर्यावरणविदों की दी जाने वाली विशेषज्ञ टिप्पणियों और चेतावनियों को हमेशा दरकिनार करके मात्र मानव की हवस को पूरा करने के लिए सरकारी महकमे पहाड़ के दोहन में लगे रहे. वैसे अभी तो कुछ भी नहीं हुआ है…शायद.. !! केदारनाथ को देखिये … केदारनाथ घाटी के बीचोबीच स्थित यह मंदिर पिछले दस सालो के मुकाबले चारो और बदिन्त्जामी से बने निर्माणों से घिर गया.. कभी निर्जन, अनछुआ, स्वच्छ और सही अर्थो में पवित्र यह तीर्थ स्थल आज उसी मानव निर्मित मल से घिर गया जो इस भारतीय ने हर तीर्थस्थल में फैला रखा है और सरकार, जिसका काम ही जनता की सुविधा का ख्याल करना है वो क्या करती रही है?
हज के लिए करोडो उड़ाने वाली यह कौंग्रेस सरकार किसी भी हिन्दू तीर्थ स्थल में एक आना नहीं खर्च करती बल्कि मंदिरों से, आसपास के धर्मशालाओं, होटलों, ढाबों इत्यादि जो क्षेत्रीय लोगों द्वारा जनता की मदद के लिए लगाये गए हैं, टैक्स तक वसूल करती है.!!
यह इसी कमाई का लालच था जो इस भारी आफत की पूर्वसूचना के बावजूद इस नीच सरकार ने तीर्थयात्रियों को वहां जाने से नहीं रोक.. आखिर इस साड़ी कमाई का सबसे मोटा हिस्सा तो सबसे ऊपर ही पहुँचता है..! (क्यों नहीं मीडिया इस भारी चोरकमाई का पर्दाफाश करता है?!)
यह तो इस निम्न सरकार की आदत में है.. जो जनता की सुविधा में प्रयुक्त पोलिथीन पर तो हेकड़ी से प्रतिबन्ध लगा देती है जबकि प्लास्टिक के अन्य व्यावसायिक उत्सर्जको जैसे कंपनियों के बनाये पाउच, शैशे, जैसे दस गुने से अधिक कारक प्रदूषण पर उसका ध्यान नहीं जाता.. गुडगाँव या दिल्ली में या कहीं भी और सार्वजानिक स्थानों पर देखिये, सारा विकास प्राइवेट संस्थाओं द्वारा किया जाता है (वो भी सरकारी घुड़की के साथ) और जो काम सरकार का है यानि फूटपाथ और सड़क किनारे हरियाली वो नदारद होता है.. लगता है ये सरकारें मात्र अधिकार प्राप्त करके कुर्सियां गरम करने, पैसा चोरी करके मात्र दुनिया के सामने ढोंग करने और मीडिया के कैमरों के सामने अपना रंडी नाच करने और भारत की हिंदी फिलम देखकर टसुयें बहाने वाली जनता को एक और भावनात्मक प्रपंच दिखाने की तैयारी के साथ ही बैठी होती हैं !!
चाहे रेलों की दुर्घटना हो, आतंकवादी हमले हों, भूकंप हो या हर महीने वाली बाढ़ हो यह सरकार बस अगली घटना का इंतजार करती है!!
और ध्यान रखिये १२६ सालों से यही पार्टी और पिछले सत्तर सालों से यही सरकार “देश की सेवा कर रही है” II

देखें तो, आज भी उत्तराखंड के अधिकाँश इलाके पर सर्क्कारी किसी महकमे की पहुँच नहीं है.. लोग मरने के कगार पर पहुंचे भूखे प्यासे अपनी सरकार का इंतजार कर रहे हैं की शायद कोई…, आपदा प्रबंधन के नाम पर लाखो करोडो खाने वाले सरकारी संगठन, सरकारी बाबु या नेता जो जनता की सेवा के लिए चुनाव में चुने जाते हैं और देश का माल खाने वाले… कई कई सौ किलोमीटर तक दिखाई नहीं दे रहे. ये सरकार इस हिन्दू भारतीय की चिंता क्यों करेगी? यह तो “मुग़ल परिवार” की गुलामी और उसकी ही परवरिश करने करने करने में लगी रहेगी! हमें यह जानना चाहिए…!!
पूरे विश्व में हजारो लोग किसी न किसी आग, आतंक, युद्ध, बढ़, भूकंप या अन्य त्रासदी का शिकार होते हैं और उनमे से कईयों को बचा भी लिया जाता है.. पर ये ऐसा देश है जिसके पास पहाड़ो के स्खलन से बचाव के लिए बोल्डर, सुरक्षा स्टेशन, दूरी कम करने के लिए सुरंगी मार्ग, यहाँ तक की रेलमार्ग, मजबूत पुल्मार्ग, अगर कहीं हजारो लाख लोग पहुँच रहे हो तो उनकी किसी भी संभावित आपदा प्रबंधन के लिए विशिष्ट पेशेवर व्यक्ति या केंद्र\एजेंसी बनाने जिससे फौरी सहायता स्थल पर तुरंत मुहैया की जा सके,इस प्रकार के कई तकनीको से, जो आज विश्व भर में उपलब्ध है,सर्वथा महरूम है!! ये ऐसा देश है जहाँ न हेलिकोप्टर है, न आपदा नियंत्रण विशेषज्ञ दल, न और कोई तरीका जिससे हम एक नदी में आई बाढ़ में अपने लोगों तक पहुँच सके.
कमाल है! शर्म है यह !!
हो सकता है मैं ये अत्यधिक आशा कर रहा होऊं सरकार से पर पूरे विश्व में इससे बदतर स्थितियां संभाली जाती हैं क्योंकि उनके बारे में पहले से सोचा जाता है तयारी की जाती है.. इसी देश में विशेषज्ञों के अनुसार, गुजरात प्रदेश में लातूर के भूकंप के बाद कभी दुबारा वैसी त्रासदी नहीं हुई;  इसलिए नहीं की वहां भूचाल दुबारा आया ही नहीं!!

बात केवल सरकारों की हो पूरा ऐसा नहीं है…नेता जनता को खुश करने की लालच में मात्र दोहन करना ही सोच पाते हैं नेता और अधिकारी देश की हर बेचने-खाने वाली सम्पदा को खोज निकालते हैं.. वो जनता को वापस क्या देते हैं यह तो बात देखने वाली है I सौंवों सालों से भगवान् भरोसे रह रही जनता भी किसी अन्य अवसर के अभाव में दाने दाने को चूस लेना चाहते हैं… ये दीखता है गंगा की तीन उपनदियों के संगम स्थल, पहाड़ो के भंगुर ढालो, ग्लेशियरो के मुहाने से लेकर नदियों के किनारे किनारे हर एक इंच पर आदमी इस स्वच्छ देवभूमि पर कब्ज़ा कर लेना चाहता है II हिमालयी क्षेत्र न सिर्फ भारत खंड का रक्षक है बल्कि उससे निकली हुई नदियाँ भारत भूमि की चिर पोषक हैं.. जैसे रसोई भी भोजन बनते समय मैली और अस्तव्यस्त होती है वैसे ही यह क्षेत्र भी काफी भंगुर, अस्थिर होता है और इस महा-नदी क्षेत्र को इसकी “माहवारी ” के समय अलग छोड़ देना चाहिए.. पर जैसा इस देश में हो रहा है और पहले कहा भी जा चूका है..सुवरो की तरह जनसँख्या बढ़ा रहे इस देश में अब हर टुकड़े पर एक इन्सान बैठा हुआ है और ये इंसानी फितरत है की जहाँ वो रहता वहीँ मल फैलाता हैI जब मानव ही मूढ़बुद्धि हो चूका हो तो उसे सबक सिखाने के लिए प्रकृति को झटका तो देना ही होता है.. भले ही इसमें उन श्रधालुओं का दोष नहीं जो धर्मकार्य के लिए गए थे पर इस स्थिति का अनुमान सरकार को तो होना चाहिए था!
बड़ा ही शर्मनाक लगता है जब हम देखते हैं की इस देश में बने लगभग सारे पर्यटन क्षेत्र शिमला, मसूरी, मैक्लियोड-गंज , धर्मशाला, डलहौजी इत्यादि अंग्रेजो के समय से ही खोजे और स्थापित किये गए थे, ये एक नहीं कई थे और देश के सबसे दर्शनीय स्थल थे… और आजतक भारतीयों ने उनमे कोई इजाफा या सुधार नहीं किया…. बल्कि पहले से ही सुसंगठित निर्माणों को प्रदूषित एवं बर्बाद करने का ही काम किया.. उसको गन्दगी का ढेर बनाने का ही काम किया है. इस तथ्य पर हमें शर्म होनी चाहिए और इसमें जनता तो है ही, सरकार जिसका काम सुव्यवास्थापन है, उसका सबसे बड़ा दोष हैII
स्विट्जरलैंड जैसे देश मात्र पर्यटन के बल पर विश्वप्रसिद्ध बने हुए हैं और एक भारतीय हैं जिनकी सबसे नायब सम्पदा तिरस्कार, बर्बादी, विनाश और मुंह की कालिख बनी हुई है!!दलाई लामा, विंस्टन चर्चिल जैसो ने हमें मूर्ख देश बताया है तो शायद सही ही कहा है! पर हमें न तो अपना दोष पता है और न योग्य पुरुषों का श्रेय… आप लेंसडाउन, मनाली, बलार्चाला, लेह, सोनमर्ग से लेकर कश्मीर तक जायेंगे वहां आपको चिड़िया का बच्चा शायद न मिले पर वहां हमारी सेना का जवान अवश्य मिल जायेगा.. वही आपका रक्षक होता है वही आपका नायक होता है .. केदार घाटी की महाआपदा में एक मात्र सेना के जवान ही ३६ हजार से अधिक लोगों को बचाने वाले साबित हुए.. पर, बेहद शर्म की बात है उन्ही जाबांज फौजियों के हाथो बचाए गए ये आपदा पीडित सेना को धन्यवाद देने, अपनी जान बचाने के लिए उनकी खुलकर प्रशंसा करने एवं इस बात का गर्व करने में भी शर्म महसूस करते दिखाई दिए.. शाहरुख़, इत्यादि जनाने छिछोरों को महानायक बताने वाला मीडिया सड़े मुंह से भी सेना के महान योगदान और साथ ही राष्ट्रीय सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् और अन्य कई गैर सरकारी संगठनो के निस्वार्थ सेवा कार्यो के बारे में जनता को कुछ भी नहीं बता रहा.. ये दूसरा शर्मनाक पक्ष है.. आखिरी हम भारतीय क्या इसी तरह की दुर्दशा के लायक हैं?

चलिए,… देखते हैं की इस बर्बादी के बाद दिल्ली की सरकार के अपने ही राज्य सरकार को दिए हजार करोड़ किसका पेट भरने के काम आते हैं ..देखते हैं की मीडिया को ऐसी खबर की चांदनी फिर कब देखने को मिलती है..देखते हैं की हम चुनाव का मत डालते समय फिर कैसे दिग्भ्रमित हो जाते हैं ..भूल जाते हैं जिसके हम आदी हैं?

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