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क्या महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है?

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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सन १९९४ में भारत की एक नंगी लड़की ने विदेशी भूखी निगाहों के सामने परेड करके एक “केश-श्रृंगार-आभूषण’ पाया था !! मिस वर्ल्ड में जीतकर सबसे नंगी लड़की की उपाधि जीतकर मानों भारत ने वास्तव में दुनिया फतह कर ली ….! सौंदर्य प्रतिस्पर्धाओं का क्या खेल होता है यह जानकर और यह स्पर्धाएं जीतकर या उसमे भाग ली लड़कियां इस जमावड़े के बाद आखिर करती क्या हैं यह भी जानने की कोशिश हम सभी को करनी चाहिए ! खैर, इस स्पर्धा के बाद एक के बाद एक कई सौंदर्य शोशेबाजी भारत और आसपास हुई, सोचने की बाद है उसके कई अवधि पश्चात भी दुबारा वह सौभाग्य हासिल नहीं हुआ, इन “केश-श्रृंगार मुकुट ” जीत के बाद भारत सरकार द्वारा लायी विदेशी मीडिया ने देश में यथार्थ एवं स्वीकार्य से एकदम इतर संस्कृति एवं वातावरण की रचना करनी शुरू कर दी !! इस अधिसंख्य विदेशी मीडिया का हथियार का जखीरा कहाँ से आया, क्योंकि उसके पहले तो भारत में यह तंत्र सुविकसित था नहीं ? इन्होने विदेशी ख़बरों को सीधे लेकर लिपस्टिक-पाउडर लगाकर भारतीय समाज-टीवी पर परोसना शुरू कर दिया ! इस तरह से दुनिया की सारी गन्दगी भारत में बेरोकटोक गिरने लग गयीं !! इसलिए सीधे साधे देश में समलैंगिकता, अश्लीलता, विदेशी नग्न साहित्य, विदेशी निकृष्ट संस्कार एवं साथ के साथ ‘स्त्री अधिकार’ या कहना चाहिए स्त्रीअतिवादी जैसे अपसंस्कारी विदेशी दुष्विचार देश में आ गए ! भारत में फ़िल्में, मीडिया अश्लीलता, अपसंस्कृति, अशालीनता, लम्पटता, फूहड़ता, अभारतीय संस्कारों को पोसने-परोसने का प्रमुख स्त्रोत है ! यही मीडिया स्त्री अधिकार के नाम पर महिलाओं को अपराध के लिए सम्बल दे रहा है, और वहीँ अपराधी औरतों को नायिका जैसे पेशकर उन्हें अपराध के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ! आश्चर्य की बात है, भारत जैसे अति महिलाचरित्र देश में जहाँ महिलाएं देवी जैसी पूजी जाती हैं, जहाँ हर सड़क, हर कोने में किसी न किसी देवी का फोटो जरूर दिख जाता है, जहाँ माँ और पत्नी की गोद से इतर पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं है, जहाँ हर टीवी सीरियल महिलाओं से भरा पड़ा है, जहाँ महिलाएं बड़ी बड़ी खलनायिकाओ के रूप में चमकाई जाती हैं .. जिस देश में पुरुषों की रक्षा स्त्री आकृतियां करती हैं, जिस देश में महिला अपराध चरम पर हैं, जिस देश में “पत्नी पीड़ित पति संघ” हैं जहाँ वेश्याएं ठसक के साथ अपना धंधा करती हैं और जिनकी चिरौरी करने के लिए तमाम फ़िल्मी, मीडिया उनका संरक्षक बनकर खुलकर इस विकृति को फैला रहा है !!
इस देश में जिसका मुंह आता है वही छूटते ही बोलता है कि– स्त्री की दुर्दशा का जिम्मेदार पुरुषवादी सोच है और पुरुष ने जानबूझकर स्त्री को अपने पैर कि जूती बनाकर रखा जिससे वह इस दयनीय \ असमानता\ कमजोरी स्थिति में आ गयी !
आइये जरा इन सभी जुमलों का विवेचन करें — स्त्री, दुर्दशा, पुरुषवादी, पिछड़ापन, असमानता, कमजोरी (अबला) ……
पहले देखते हैं- दुर्दशा पर … आज हर महिलावादी संगठन और मीडिया यही दिखने पर तुला है कि महिला कि स्थिति बुरी है… तो क्या हर पुरुष सुखी, मालामाल सुखी है ? क्या यह हालत पुरुष कि बनायीं हुई है ? अगर हाँ तो कैसे ? कोई मनुष्य, और मनुष्य क्या हर जीव तक एक बराबर खुश या सोगवार नहीं है ! तो महिलाओं के दुःख का क्या कारन है ?
यह तथ्य तो सबसे बेतुका है– पुरुषवादी सोच ! लम्पट पुरुषों के लिए हर स्त्री खासकर वेश्यावृत्ति वाली स्त्रियां अराध्या होती है…वो उनके आकर्षण में इतने अंधे होते हैं जो ऐसी स्त्रियों की कानी अंगुली के छल्ले जैसे होते हैं , जिन्हे स्त्री में कोई खोट नहीं दीखता ! पुरुषवादी सोच वास्तव में, स्त्रीदेह का पक्का गुलाम होता है -वही उसकी सबसे बड़ी वृत्ति होती है, अगर ऐसा न होता तो हेमा मालिनी से लेकर सन्नी लियॉन तक आज इन भारतीयों की अराध्या देवियाँ नहीं बानी होती, ऐसी देहबेच औरतें आज हर दीवाल, हर खम्भे, हर टीवी परदे, हर पत्रिका हर कमरे में नहीं होतीं !! यह देश वास्तव में स्त्री चरित्र देश है और इस पर स्त्रीवादी सोच ही हावी है ! इसीलिए यह देश स्त्री या यौन अपराधों में अव्वल है, और जहाँ महिलाओं को कभी सजा नहीं मिलती !
वास्तव में यह देश पुरुषवाची नहीं, हड्डियों, खून अंदर तक एक महिलावादी सोच और महिलाचरित्र से समूचा अंदर बाहर बना हुआ है !
वास्तव में, एक ऐसा देश जो १५०० वर्षों से स्त्री-आराधना के निकृष्ट एवं हास्यास्पद व्यव्हार में लगा हुआ है, सैकड़ों सालों से एक ऐतिहासिक महाविष का सेवन करता रहा है (जिसका विवरण अगले लेख में) इस फेमिनिज्म- यानि स्त्री-आतंकवाद रुपी जहर से दो तरह से हानि झेल रहा है !!! महान आर्य पूर्वज मनीषियों द्वारा प्रदत्त महानतम ज्ञान को हम महमूढ़मतियों ने निकृष्ट रूप बना रखा है !
पिछड़ापन, असमानता ….. जैसा मैंने पहले भी कहा है !! सोचें, हम चूल्हे में पानी जलाएं और आग पीने की कोशिश करें, सूरज से अँधेरे और शीतलता की आशा करें और रात्रि से प्रकाश की..शेर को हम पालने की कोशिश करें और बकरी से मांस खाने की आशा करें… अगर हम गाय बैल को सामान मान लें और गाय पर जुआ चढ़ा दें और, बैल का दूध निकालने लगें …..क्या होगा ?
तो गड़बड़ी कहाँ है ?
कौन अबल है ? क्या शार्क मछली जल में है ? क्या पंछी गरुड़ (बाज) आकाश में अबल है ? क्या एक गाय एक गृहस्थ कुटुंब में निर्बल है, कम पूजनीय है ? एक मेहनतकश किसान अपने खेत में निर्बल है ? भूमि में असंख्य कीट हैं, रेत में बिच्छू है, तराई में सांप हैं .. अपने बिल में चूहा भी निर्बल नहीं है …. तो कौन निर्बल अबला है ?
मछली भूमि पर, पंछी धरती पर, मूषक गर्म रेत पर, सर्प खुले में … हर मानव भी अशक्त है .. वैसे ही स्त्री भी अबला है ..और उसे ऐसा ही बनाया गया है, उसे ऐसा ही होना था*(अन्य लेख में पढ़ें-स्त्री ..) … स्त्री सब कुछ नहीं है, वो सभी जंतुओं में एक है, हाँ, हम सभी जंतु हैं – अपनी अपनी कमियां लिए …. हम सबकी सीमाएं हैं, और हमें अपनी सीमायें मालूम होनी चाहियें !!
भारत में स्त्री अगर अबला और अभागी है तो सकल ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई जगह नहीं होगी जहाँ उसे प्रसन्नता मिल जाये .. वास्तव में, स्त्री कभी आशावादी, चिर संतुष्ट नहीं होती..यही उसकी बनावट है, उसके अंदर कमियां हैं, उसके अंदर असुरक्षा है, ये सब इसीलिए है कि कोई एक पुरुष उसके लिए यह सब लेकर आता है …. अगर पुरुष क्षीण है, अशक्त है जिसका अर्थ अपने दायित्व निर्वहन में ढीला है, नैतिक रूप से हींन, पराजित, लम्पट एवं गंभीरता से रहित है ..कहना चाहिए पौरुष और पौरुष के संरक्षक “धर्म” की अनुपस्थिति में सभी असुरक्षित हैं स्त्री भी … जो पुरुष पुत्री पैदा करके उनका संरक्षण भी ना कर पाएं…जो पिता अपनी पुत्री को अनुशासन न सीखा पाये, जो पिता अपनी पुत्री को पुत्री नहीं पुत्र बनाने की कोशिश करते रहें .. जो परिवार अपनी पुत्रियों को सही संस्कार न दे पाएं, जो पुत्रियों को रात को ग्यारह बजे किसी भी लड़के के साथ जाड़े की काली रात में अकेले मजे करने के लिए छूट देते रहें, जो पुत्रियों को स्वछँदता का पाठ पढ़ाते रहें, उनको हर काम करने की छूट देते रहें, उनके दामन को गंदला होने के लिए छोड़ दें और फिर जो अवश्यम्भावी हो जाये तो उसको “दामिनी” बनाकर दुनिया भर में लोकप्रिय हो जाएँ और फिर अपने आंसू दिखाकर जाने क्या साबित करने की कोशिश करें ….ऐसे पुरुष पिता और पुरुष की गरिमा पाने लायक नहीं हैं !
भारत की समस्या भारत का अत्यधिक स्त्रीचरित्र होना है… पुरुषों का अतिस्त्री वृत्ति में लिप्त होना, स्त्री को अपनी हर वासना, अपनी महत्वाकांक्षा का वाहक बनाना, उससे बढ़कर सबसे बड़ी विकृति है — स्त्री पूजा करना …भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है ! (लेख- देवी नहीं है स्त्री* …..)
भारत को पराजित करने और उसे गुलाम बनाये रखने के लिए भारत पर यह स्त्रीवाची जंजीर थोपी गयी …. भारत १५०० वर्षों से इस जकडपाश का शिकार रहा है, और पिछले ६८ सालों से इसी जकड़न से दबा हुआ है, …. (यह एक अन्य महा षड्यंत्र है जिसपर से पर्दा हटेगा)
स्त्री के लिए भारत के प्राचीन धर्म हमारे महान मनीषियों द्वारा स्थापित संस्कार धर्म ने निश्चित निर्देश दिए हैं — एक बार नहीं, कई कई बार … स्त्री सीता के रूप में, श्री राम की मर्यादा से आबद्ध, श्री लक्ष्मण रेखा से आरक्ष, अपने स्त्र्योचित संस्कारों से पूर्ण स्वनियंत्रण, आत्मानुशासन एवं अपने दायित्वों के प्रति सदा सजग एवं उन अकृत्यों के प्रति विशेषतयः जो नहीं किये जाने हैं, आदि मूल्यों को आत्मसात करके ही मान्य है, समाज में स्वीकार्य है ..अन्यथा नहीं !
और स्त्री कौन है ? क्या सभी स्त्री देह की स्वामिनियाँ स्त्री हैं ? या भारतीय स्त्री हैं ? नहीं.. स्त्री देह से भी कहीं महत्वपूर्ण स्त्री मनस, स्त्री संस्कार, स्त्री मर्यादा एवं स्त्री मूल्य है, उसके आभाव में स्त्री स्त्री नहींहै, कहीं से भी सम्माननीय नहीं ! (यह एक बड़ा विमर्श है और हर स्त्री के लिए परमावश्यक है *)
भारत कई तरह के दास-पाशों एवं कई भूत विकृतियों से आसन्न है –जो उसे विभिन्न विदेशी यातनाओं(इतिहास) ने दिए हैं .. भारत पर पश्चिमी आक्षेप अत्यंत बढ़ चूका है, भारत भारत नहीं कुछ और बनने की कोशिश कर रहा है ..इसी भारत भूमि में भारत्येत्तर विक्षोभ हैं . यहाँ के नगर जैसे बम्बई, खासकर दिल्ली , शालीनता, अनुशासन, प्राचीन भारतीय संस्कार यानि “धर्म” से सर्वथा च्युत हो चुके हैं ..इसका सबसे निकृष्ट प्रभाव स्त्रियों के आचरण पर पड़ा है …
स्त्रियां आज घर तोड़ने की कोशिश कर रही हैं… उन्हें घर बनाने में रूचि नहीं है ..स्त्रियों को अब स्वार्थी बनना सिखाया जा रहा है, स्त्रियों को बाजारू बनाया जा रहा है ..
भारत विदेशी शक्तियों के निशाने पर है जैसा वो पिछले १५०० वर्षों से है, गलीच पतित असभ्य लोग भारत की प्राचीन सभ्यता को स्त्रियों का सहारा लेकर निशाना बनाना चाहते हैं .. वो अपनी गंदगी यहाँ फैलाना चाहते हैं .. भारत की स्त्रियों को पाश्चात्य संस्कृति से दूर रहना चाहिए..अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी खान-पान, रहनसहन,तौर-तरीके, जलील नाचगाने, वेशभूषा एवं उन्हें किसी भी तरह से नक़ल करने की इच्छा से दूर रहना चाहिए ….
भारतीय स्त्री का नैतिक आधार सीता का आचरण है ……. अमेरिका, इंग्लैण्ड इत्यादि देशों को आदर्श न बनायें .. जैसा आपको कुछ पश्चात पता चलेगा –यही देश असुर, दैत्य और राक्षस हैं जिनका नायक “रावण” था …….. रावण भारत, भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति और भारतियों का चिर शत्रु है …था और आज भी है (मेरी अगली पुस्तक में)
भारत को अपनी स्त्रियों को नियंत्रित करना पड़ेगा …… भारत के पुरुष, जिनमे भारतीय राजनीतिज्ञ भी हैं आज भी बचकाने हैं उन्हें पता नहीं क्या करना है … नेता और अन्य पुरुष लड़कियों को पूरा छोड़ चुके हैं, और उनकी हर जायज़ नाजायज़ बात को आँख मूँद कर मान लेते हैं.. नेताओ को कुछ सीमाएं नहीं लांघनी चाहिए– अभी जैसा विवाद शनि शिंगणापुर का हो रहा है, वह यही परिलक्षित करता है कि भारतीय महिलाएं कितनी दुस्साहसी और नीच प्रकृति कि हो गयी हैं, धर्म के सम्बन्ध में हमारा अज्ञान आज शायद चरम पर है, उसपर भी स्त्री स्वछँदता, स्त्री कदाचार तो सर चढ़ कर बोल रहा है ……
यह औरत जो भारत में शक्ति मांग रही है, उसे बताना चाहिए किस देश में स्त्री के लिए अलग सीट, अलग डब्बा, अलग ट्रेन, अलग रेस्टोरेंट, अलग कानून, अलग कोर्ट, अलग थाना, अलग मंदिर, यहाँ तक की महिलाओं के लिए मदिरालय (दारू मॉल, मयूर विहार), और भी जाने क्या क्या, मिलता है ? कहाँ, मुस्लिम देशों में भी नहीं, स्त्रियों को इतने बंटे हुए अधिकार मिले हुए हैं जो खुद अन्याय का प्रतीक हैं, ……
यह जो औरत है … जो न्यायिक परिभाषा के आधार पर समानता ढूंढ रही है … उस मूर्ख, निर्लज्ज लड़की के बाप का पता करना चाहिए …..
इस गन्दी लड़की तृप्ति देसाई के संस्कार और इसकी करतूत हम सबको खासकर इसके घरवालों को ठीक से देखना चाहियें —
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न्यायलय कि दृष्टि में सब समान होने चाहिए का अर्थ है- स्त्री हो या पुरुष दोनों को अपराध का दंड बराबर मिलना चाहिए ..स्त्री को सहानुभूति के आधार पर छोड़ नहीं दिया जाना चाहिए !!! न्यायलय कि नजर में सब बराबर हैं इसका अर्थ ये नहीं कि अयोग्य को भी वही प्रशस्ति मिले जो योग्य को मिलता है … अंधे को अव्वल निशानेबाज के बराबर, लंगड़े को प्रथम धावक के बराबर सम्मान, प्रतिभावान, संत को अधर्मी, अपराधी दोनों को बराबर सम्मान समाज, एक बुद्धिमान व्यक्ति के लिए तो है ही, सबसे बढ़कर, न्यायलय के लिए पाप के बराबर है !
६८ वर्ष पुराने संविधान में रत्ती भर सामर्थ्य नहीं जो हजारों साल के भारतीय धर्म के दृढ सिद्धांतों को चुनौती भी दे सके …. स्त्री शनि की ही पूजा नहीं, मंदिर की पूजा के लायक नहीं है (इसका कारन अवश्य दिया जायेगा*)(इसे कोई नेता पुरुष बदल नहीं सकता, ना ही किसीको कोशिश करनी चाहिए..अधिकार होने पर भी !!!)….. स्त्री के कारन ही भारत का धर्म-उपासना-आस्था की दृढ़ता- और धर्म के पवित्रीकरण में प्रदूषण आया है* स्त्रियों के लिए मंदिर घूमने जाने दर्शन करने, मन बहलाने का बहाना बन गया है..मंदिरों में पुरुष नगण्य, औरतें ही दिखाई देती हैं * (धर्म का नाश-लेख) ……..
शनि, हनुमान, रूद्र, मंगल, भैरव, साथ ही कार्तिकेय, इत्यादि की पूजा या दर्शन तक महिलाओं के लिए सर्वथा वर्जित है, जैसे सबरीमाला जैसे अनेक मंदिरों में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है — आज से नहीं, हजारों सालों से, मंदिर सबकी संतुष्टि, सबके भोग…धर्म विधर्मी इच्छा या अतार्किक मनघढ़ंत मांगों को पूरा करने के लिए नहीं है* (लेख-मंदिरों का शुद्ध स्वरूप) …….. यही परीक्षा है, भारतीय हिन्दू धर्मी की, कितना हम जानते हैं अपने धर्म को, कितना हम कर सकते हैं अपने देश के लिए …. सालों से खेला जा रहा है, आर्यधर्म से, भारतदेश से …. …………… सही जवाब यही होगा की इस देसाई औरत की, जो विदेशी मदारियों के बन्दर केजरी और अन्य विधर्मी यथा खान्ग्रेसी षड्यंत्रकर्ताओं के दम से इतनी हिमाकत कर रही है, और वो लड़की जो शनि चबूतरे पर चढ़ी थी(और, ऐसी हर नीच प्रकृति स्त्री की), दोनों को सबके सामने सख्त से सख्त सजा दी जाये… बेंत से अच्छी तरह नग्न पिटाई की जाये और फिर काट के फेंक दिया जाए ………… वास्तव में यही न्याय होना चाहिए ! पर, ऐसा तो वास्तविक पुरुष करेंगे हिजड़े नहीं ….हिजड़े भी कर लेते… पर स्त्रीचरित्र चूड़ीघाघरा पहने कापुरुषों के बस का ये नहीं ….
सशक्तिकरण भारतीय पुरुष का करना चाहिए,
समाज का कर्ता पुरुष है, उस पुरुष का पिता और सभी पुरुषों का पिता धर्म है …….. धर्म छिन्नभिन्न, अदृश्य है, उसका अपमान, उसकी पराजय पहले हो चुकी है ..आजकी स्थिति उसीका परिणाम है ………..
भारत में धर्म की स्थापना आवश्यक है, भारत में पौरुष की स्थापना आवश्यक है .
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एवं अन्य नेतागण, भारत के सामान्य हिन्दू धर्मी से अपेक्षा है जो सही है वो करें ………..और, अब करें !
दंड सत्य को स्थापित करता है, अपराध को रोकता है …………..

शनि के युग में (अन्य लेख -रवि पुत्र शनि ) शनि का ऐसा अपमान भारत को (फिर से ) ले बीतेगा ………..
भारत में स्त्री ही सबसे शक्तिशाली है.. उसे किसी शक्ति की आवश्यकता नहीं..आखिर उसे ही शक्ति का रूप समझ जाता है, तो ऐसी शक्तशाली स्त्रियों को पाप करने पर सजा भी तो भरपूर मिलनी चाहिए !?? किसी देश में औरतें नेता, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री नहीं होतीं कोने कोने में इतनी संख्या में स्त्रियां अपनी स्वतंत्रता, अपनी विशिष्ट उच्च स्थिति का स्वछंद आनंद उठाती नहीं दिखतीं…उन्हें उस लायक समझा नहीं जाता …. पर, भारत में इसका ठीक उल्टा ही है .. पुरुषों की सारी शक्ति लेकर भी स्त्री को अबला होने का भय है, स्वयं ही पाप कर स्वयं को बेचारी दिखाती, सरे आम शक्ति प्रदर्शन करती औरतें, खुल्ले आम सामाजिक वर्जनाओं, धार्मिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाती, विदेशों की नक़ल करती- विदेशियन के तो कोई धर्म नहीं है, सीमा पर आतंकियों जैसे ही भारतीय समाज में इस तरह का सॉफ्ट टेररिज्म फैलाने वाली महिलाओं पर भी बेहद सख्त कार्रवाई होनी चाहिए !

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